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________________ ध्यान का विज्ञान स्वप्न और कामनाएं मिट गईं, अब आगे एक ही क्षण के लिए। और फिर दोबारा है; हम कुछ वास्तविक चाहते हैं, जाने का उपाय न रहा। फिर विश्राम स्वतः अंधकार घिर आता है और मन अपने सभी काल्पनिक नहीं। लेकिन कल्पना तुम्हारे ही घटता है। स्वप्न लिए, सभी कामनाएं और मूढ़ताएं भीतर की एक वास्तविकता है, एक क्षमता जरा 'विश्राम' शब्द पर विचार करो। लिए फिर से लौट आता है। है, एक संभावना है। तुम कल्पना कर बस होओ...ठहर जाओ...तुम घर आ एक क्षण के लिए मेघ छंटे और तुम्हें सकते हो। इससे पता चलता है तुम्हारे गए। सूर्य के दर्शन हुए। अब मेघ फिर से घिर प्राण कल्पना करने में सक्षम हैं। यह क्षमता एक क्षण को सब ओर सुवास उठी, आए; अंधकार छा गया और सूर्य छिप एक वास्तविकता है। इस कल्पना के द्वारा और अगले क्षण तुम उसे खोज रहे हो और गया। अब तो यह विश्वास कर पाना तुम स्वयं को नष्ट भी कर सकते हो और खोज नहीं पा रहे कि कहां गई। कठिन होगा कि सूर्य है भी। अब तो यह निर्मित भी कर सकते हो। यह तुम पर प्रारंभ में केवल झलकें मिलेंगी। विश्वास भी कर पाना कठिन होगा कि क्षण निर्भर है। कल्पना बहुत शक्तिशाली है। धीरे-धीरे वे ठोस होती जाएंगी, अधिक भर पहले जो अनुभव हुआ, वह सत्य था। वह संभाव्य शक्ति है। स्थिर होती जाएंगी। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, हो सकता है वह भ्रम रहा हो। शायद मन कल्पना क्या है? कल्पना है किसी बहुत धीरे वे सदा के लिए ठहर जाएंगी। कहे, वह एक कल्पना ही रही हो। धारणा में इतने गहरे चले जाना कि वह उससे पहले, तुम उसे 'मिला ही हुआ' नहीं वह अनुभव इतना अविश्वसनीय है, धारणा ही वास्तविकता बन जाए। जैसे समझ सकते; वह एक भूल होगी। कि तुम्हें घटा हो यह असंभव ही लगता है। तिब्बत में उपयोग होने वाली एक विधि जब तुम ध्यान में, साधना-काल में बैठे मन की इन सारी मूढ़ताओं, इन सब मेघों के विषय में तुमने सुना होगा। वे उसे होओगे तो ऐसा होगा। लेकिन फिर यह और अंधकार के बावजूद भी यह घटना उष्मा-योग कहते हैं। सर्द रात है, बर्फ चला भी जाएगा। तो ध्यान की दो घटनाओं तुम पर घटीः एक क्षण को तुम्हें सूर्य के गिर रही है और तिब्बती लामा खुले' के बीच तुम्हें क्या करना है? विधि को दर्शन हुए। यह संभव नहीं लगता; लगता आकाश के नीचे नग्न खड़ा हो जाएगा। जारी रखो। जब तुम गहन ध्यान में पहुंच है जरूर तुमने उसकी कल्पना की होगी; तापमान शून्य से नीचे है। तुम तो मरने जाओ तो विधि को छोड़ दो। जैसे-जैसे शायद तुमने उसका सपना देखा हो। ही लगोगे, जम जाओगे। लेकिन लामा जागरूकता शुद्ध होती जाती है, एक क्षण दो झलकों के बीच में फिर से शुरू एक विधि का अभ्यास कर रहा है-वह आता है जब अचानक वह बिलकुल शुद्ध करो; नाव में उतरो, नाव का फिर से कल्पना कर रहा है कि उसका शरीर हो जाती है : तब विधि को छोड़ दो, विधि उपयोग करो। एक ज्वलंत अग्नि है और उससे पसीना को त्याग दो, औषधी के विषय में सब भूल निकल रहा है—इतनी गरमी है कि उसका जाओ; बस ठहरो और हो रहो। पसीना निकल रहा है। और सच ही पसीना _लेकिन प्रारंभ में ऐसा कुछ क्षण के लिए कल्पना तुम्हारे लिए बहने लगता है जबकि तापमान शून्य ही होगा। कई बार यहां मुझे सुनते हुए भी से नीचे है और खून तक जम जाना ऐसा हो जाता है। चाहिए। उसका पसीना बहने लगता है। एक क्षण के लिए, हवा के एक झोंके पहले तुम्हें यह समझ लेना है कि क्या हो रहा है? यह पसीना वास्तविक है, की तरह तुम दूसरे ही लोक में, अमनी कल्पना है क्या। आजकल यह उसका शरीर वास्तव में गरम है लेकिन लोक में पहुंच जाते हो। एक क्षण के लिए काफी निंदित शब्द है। जैसे ही 'कल्पना' यह वास्तविकता कल्पना से पैदा की गई तुम जानते हो कि तुम 'जानते' हो, लेकिन शब्द सुनते हो, तुम कहते होः यह तो व्यर्थ है।'
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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