SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान का विज्ञान विधियों का उपयोग कैसे हो सकता है? वे यदि तुम मन के विषय में कुछ नहीं कैसे सहयोगी हो सकती हैं?" तुम्हारा पहले विधि को समझ लो जानते...और वास्तव में तुम उसके बारे में अहंकार कहेगा ः वे किसी काम की न कुछ भी नहीं जानते। मन तो मात्र एक होंगी। ने एक वृद्ध डॉक्टर के बारे में सुना शब्द है। तुम उसकी जटिलता को नहीं एक बात स्मरण रखो-अहंकार को । है। एक दिन उसके सहयोगी ने उसे जानते। मन अस्तित्व की सबसे जटिल सदा कठिन में ही रस होता है, क्योंकि जब फोन किया क्योंकि वह बड़ी कठिनाई में चीज है; उसके तुल्य और कुछ भी नहीं है। कुछ कठिन होता है तो उसमें एक चुनौती थाः उसके मरीज का दम घुटा जा रहा था; और मन सबसे कोमल भी है; तुम उसे होती है। यदि तुम कठिनाई के पार जा एक बिलियर्ड की गेंद उसके गले में फंस नष्ट कर ले सकते हो; तुम कुछ ऐसा कर सको तो तुम्हारा अहंकार तृप्त अनुभव गई थी, और सहयोगी को समझ नहीं आ सकते हो, जिसे फिर अनकिया न किया करेगा। अहंकार कभी भी सरल की ओर रहा था कि क्या करना है। तो उसने डॉक्टर जा सके! ये विधियां बहुत ही गहन आकर्षित नहीं होता कभी भी नहीं! यदि से पूछा, “अब मैं क्या करूं?" डॉक्टर ने अनुभवों पर, मनुष्य मन के एक अत्यंत तुम अपने अहंकार को चुनौती देना चाहो कहा, "मरीज को किसी पंख से गुदगुदी गहन साक्षात्कार पर आधारित हैं। हर तो तुम्हें कोई कठिन उपाय को खोजना करो।" विधि बहुत लंबे प्रयोग पर आधारित है। होगा। यदि कुछ सरल हो, तो उसमें कोई कुछ मिनट बाद सहयोगी ने बड़े प्रसन्न तो इसे याद रखना : अपने आप से कुछ आकर्षण नहीं होगा, क्योंकि तुम उसे जीत और प्रफुल्लित होकर फोन किया, भी मत करो, और दो विधियों को मिलाओ भी लो तो अहंकार की तृप्ति नहीं हो “आपका इलाज तो बहुत बढ़िया सिद्ध मत, क्योंकि उनकी कार्यशैलियां भिन्न हैं, सकती। पहली बात, जीतने के लिए कुछ हुआ! मरीज हंसने लगा और गेंद बाहर उनके मार्ग भिन्न हैं, उनके आधार भिन्न हैं। था ही नहीं : इतनी सरल बात थी। अहंकार निकल गई। लेकिन मुझे बताइए आपने यह वे एक ही लक्ष्य पर पहुंचाती हैं, परंतु कठिनाइयों की मांग करता है-कुछ अपूर्व विधि कहां से सीखी?" साधन की भांति वे भिन्न हैं। कई बार तो वे बाधाएं जिन्हें पार करना पड़े, कुछ शिखर डॉक्टर बोला, “यह तो मैंने ही बनाई बिल जिन्हें जीतना पड़े। और जितना दुर्गम है। मेरा सदा से यह उद्देश्य रहा है: जब विधियों को मिलाओ मत। वास्तव में, शिखर होगा, उतनी ही तुम्हारे अहंकार को तुम्हें पता न चले कि क्या करना है, तो कुछ भी मत मिलाओ; विधि जिस प्रकार तृप्ति होगी। कुछ भी करो।" दी गई है, वैसे ही उसका उपयोग करो। क्योंकि ये विधियां इतनी सरल हैं, लेकिन जहां तक ध्यान का संबंध है, उसमें परिवर्तन मत करो, सुधार मत उनमें तुम्हारे मन के लिए कोई आकर्षण यह नहीं चलेगा। जब तुम्हें नहीं पता कि करो-क्योंकि तुम उसमें सुधार कर नहीं नहीं होगा। स्मरण रखो, तुम्हारे अहंकार क्या करना है तो कुछ भी मत करो। मन सकते, और कोई भी परिवर्तन तम करोगे को जो आकर्षित करे, वह तुम्हारे बहुत दुर्बोध, जटिल और कोमल है। यदि वह घातक होगा। आध्यात्मिक विकास के लिए सहयोगी __तुम्हें नहीं पता कि क्या करना है, तो कुछ और इससे पहले कि तुम कोई विधि नहीं हो सकता। भी न करना बेहतर है, क्योंकि बिना जाने शुरू करो, यह भलि-भांति जान लो कि ये विधियां इतनी सरल हैं कि तुम निर्णय तुम जो भी करोगे वह सुलझाने की अपेक्षा तुम उसे समझ गए हो। यदि तुम्हें कुछ कर लो तो किसी भी क्षण वह सब ___ और जटिलताएं निर्मित करेगा। वह घातक संदेह हो और लगे कि अभी तुम ठीक से उपलब्ध कर ले सकते हो जो मनुष्य चेतना भी सिद्ध हो सकता है, आत्मघाती भी नहीं जानते कि विधि क्या है, तो उसे न के लिए संभव है। सिद्ध हो सकता है। करना बेहतर होगा, क्योंकि हर विधि
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy