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________________ ध्यान का विज्ञान विधि नहीं है। यह तुम्हें बड़ा विरोधाभासी लेकिन गहरे में वे कृत्य नहीं हैं, क्योंकि हैं। अंतर्रूपांतरण, अंतर्भानुभूति प्रयास के लगेगा क्योंकि मैं तो तुम्हें विधियां दिए ही यदि तुम उनमें सफल हो जाओ तो कृत्य द्वारा नहीं हो सकती, क्योंकि प्रयास एक चला जाता है। परम अर्थों में ध्यान कोई समाप्त हो जाता है। प्रकार का तनाव है। प्रयास में तुम विधि नहीं है; ध्यान एक समझ है, एक प्रारंभ में ही ऐसा लगता है कि प्रयास हो बिलकुल विश्रांत नहीं हो सकते; प्रयास ही होश है। लेकिन तुम्हें विधियों की जरूरत रहा है। लेकिन तुम उसमें सफल हो जाओ बाधा बन जाएगा। इस पृष्ठभूमि को बुद्धि है क्योंकि वह जो परम समझ है तुमसे। तो प्रयास विदा हो जाता है और सब कुछ में रखकर यदि तुम प्रयास करो, तो बहुत दूर है। तुम्हारे भीतर ही गहरे में है, स्वतःस्फूर्त और प्रयासरहित हो जाता है। धीरे-धीरे तुम प्रयास को छोड़ने में भी लेकिन फिर भी तुमसे बहुत दूर है। इसी यदि तुम उसमें सफल हो जाओ तो फिर सक्षम हो जाओगे। 3 क्षण तुम उसे उपलब्ध हो सकते हो, वह कृत्य नहीं रहता। फिर तुम्हारी ओर से लेकिन होओगे नहीं, क्योंकि तुम्हारा मन किसी प्रयास की जरूरत नहीं है। वह चलता चला जाता है। इसी क्षण यह संभव तुम्हारी श्वास-प्रश्वास की भांति हो जाता ये विधियां सरल हैं होते हुए भी यह असंभव है। विधियां इस है। लेकिन प्रारंभ में तो प्रयास होगा ही, अंतराल को भर देंगी; वे अंतराल को भरने क्योंकि मन ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता के लिए ही हैं। जिसमें प्रयास न हो। तुम किसी चीज को • सब विधियां जिनकी हम चर्चा तो प्रारंभ में विधियां ही ध्यान होती हैं, प्रयासरहित बता दो तो पूरी बात ही व्यर्थ करेंगे, किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा ही अंत में तुम हंसोगे-कि विधियां ध्यान दिखने लगती है। झेन में, जहां बताई गई हैं जो उपलब्ध हो गया हो। इसे नहीं हैं। ध्यान तो अंतस सत्ता की एक प्रयासरहितता पर बहुत बल दिया जाता है, स्मरण रखना। वे बहुत सरल लगेंगी, और अलग ही गुणवत्ता है, उसका किसी चीज गुरु अपने शिष्यों को कहते हैं, “बैठ भर सरल वे हैं भी। हमारे मन को इतनी सरल से कुछ लेना-देना नहीं। लेकिन यह अंत रहो। कुछ करो मत।" और शिष्य प्रयास चीजें आकर्षित नहीं कर सकतीं। क्योंकि में ही होगा; ऐसा मत सोचना कि प्रारंभ में करता है। निश्चित ही प्रयास के अतिरिक्त यदि विधियां इतनी सरल हों और निवास ही यह हो गया, वरना अंतराल कभी भी और तुम कर भी क्या सकते हो? इतना निकट हो, यदि तुम पहले से ही भर नहीं पाएगा। 2 प्रारंभ में, प्रयास भी होगा, कृत्य भी उसमें हो, और घर इतना समीप हो तो तुम होगा लेकिन प्रारंभ में ही, अनिवार्य स्वयं को हास्यास्पद लगोगे—कि फिर बुराई की तरह। तुम्हें सतत स्मरण रखना तुम उसे चूक कैसे रहे थे? अपने ही प्रयास से शुरू करो होगा कि तुम्हें उसके पार जाना है। एक अहंकार की हास्यास्पदता को अनुभव क्षण ऐसा आना ही चाहिए जब तुम ध्यान करने की अपेक्षा तुम सोचोगे कि ऐसी के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हो, बस सरल विधियां सहयोग नहीं दे सकतीं। न की विधियां कृत्य हैं, क्योंकि विश्रामपूर्ण उपस्थित भर हो और ध्यान यह एक छलावा है। तुम्हारा मन तुमसे तुम्हें कुछ करने का परामर्श घटित हो जाता है। बस बैठो या खड़े होओ कहेगा कि ये सरल विधियां किसी काम दिया गया है-ध्यान करना भी कुछ करना और ध्यान हो जाता है। कुछ भी न करो, की नहीं हो सकतीं कि वे इतनी सरल है; मौन बैठना भी कुछ करना है, कुछ न बस जागे रहो, और ध्यान हो जाता है। हैं, उनसे कोई उपलब्धि नहीं हो सकती। करना भी एक प्रकार का करना है। बाह्य ये सब ध्यान विधियां तुम्हें एक “भगवत्ता को उपलब्ध करने के लिए, पूर्ण रूप से तो सभी ध्यान विधियां कृत्य हैं, प्रयासरहित अवस्था तक ले आने के लिए और परम को पाने के लिए, इतनी सरल
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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