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सद्गुरु के साथ, वैज्ञानिक विधियों से तुम बहुत सा समय, अवसर और ऊर्जा बचा ले सकते हो। और कई बार तो कुछ ही क्षणों में तुम्हारा इतना विकास हो जाता है कि जन्मों-जन्मों तक भी इतना विकास संभव न हो पाता। यदि सम्यक विधि का उपयोग किया जाए तो विकास का विस्फोट हो जाता है— फिर इन विधियों का उपयोग हजारों वर्षों के प्रयोगों में हुआ है। किसी एक व्यक्ति ने इनकी रचना नहीं की थी; कई-कई साधकों ने इन्हें रचा था, और यहां केवल सार ही दिया गया है।
ध्यान का विज्ञान
तक आगे बढ़ती रहेगी जब तक वह ऐसे बिंदु पर न पहुंच जाए जहां से और आगे बढ़ना संभव नहीं होगा; वह उच्चतम शिखर की ओर बढ़ती चली जाएगी। यही कारण है कि व्यक्ति बार-बार जन्म लेता रहता है। तुम पर छोड़ दिया जाए तो तुम
विधियां और ध्यान
विधियां सहयोगी हैं
विधियां सहयोगी हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक होती हैं। तुम व्यर्थ ही भटकने से, व्यर्थ ही टटोलने से बच जाते हो; यदि तुम कोई विधि नहीं जानते, तो देर लगाओगे ।
पहुंच तो जाओगे, लेकिन तुम्हें बहुत लंबी यात्रा करनी पड़ेगी, और यात्रा बहुत
क्ष्य तक तुम पहुंच जाओगे, क्योंकि दुस्साध्य और उबाने वाली होगी।।
ल तुम्हारे भीतर की जीवन ऊर्जा त
सभी विधियां सहयोगी हो सकती हैं लेकिन वे वास्तव में ध्यान नहीं हैं, वे तो अंधकार में टटोलने के समान हैं। किसी दिन अचानक, कुछ करते हुए, तुम साक्षी हो जाओगे। सक्रिय, या कुंडलिनी, या दरवेश जैसा कोई ध्यान करते हुए एक दिन अचानक ध्यान तो चलता रहेगा लेकिन
तुम उससे जुड़े नहीं रह जाओगे। तुम पीछे मौन बैठ रहोगे, उसके द्रष्टा होकर उस दिन ध्यान घटा; उस दिन विधि न बाधा रही, न सहायक रही। तुम चाहो, तो एक व्यायाम की भांति उसका आनंद ले सकते हो; उससे तुम्हें एक शक्ति मिलती है, लेकिन अब उसकी कोई आवश्यकता न रही - वास्तविक ध्यान तो घट गया।
ध्यान है साक्षित्व । ध्यान करने का अर्थ है साक्षी हो जाना। ध्यान बिलकुल भी कोई
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