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ओशो से प्रश्नोत्तर
द्रष्टा को स्थूल से सूक्ष्म की ओर गहराओ
तातुन
मन के एक हिस्से द्वारा मन के गरू करना होता है शरीर को भावदशाओं को देखते हो, तो द्रष्टा इतना दूसरे हिस्से को देखने और द्रष्टा चलते हुए, बैठे हुए, बिस्तर पर मजबूत हो जाता है कि स्वयं बना रह के बीच मैं किस प्रकार भेद कर जाते या खाते हुए देखने से। सकता है-स्वयं को देखता हुआ, जैसे सकता हूं? क्या द्रष्टा स्वयं को
स्थूलतम चीजों से व्यक्ति को शुरू करना कि अंधेरी रात में जलता हुआ एक दीया न देख सकता है? एक दिन, मुझे
चाहिए, क्योंकि यह सरल है। और फिर केवल अपने आस-पास प्रकाश करता है, लगा मैंने द्रष्टा को पा लिया,
उसे सूक्ष्म अनुभवों की ओर जाना चाहिए, बल्कि स्वयं को भी प्रकाशित करता है!
विचारों को देखना शुरू करना चाहिए। द्रष्टा को उसकी विशुद्धता में खोज और उसी दिन प्रवचन में मैंने
और जब व्यक्ति विचारों को देखने में लेना अध्यात्म में सबसे बड़ी उपलब्धि है, आपको यह कहते सुना, “यदि तुम
कुशल हो जाता है तो उसे अनुभूतियों को क्योंकि तुम्हारे भीतर का द्रष्टा तुम्हारी सोचते हो कि तुमने द्रष्टा को
देखना शुरू करना चाहिए। जब तुम्हें लगे देर
आत्मा है, तुम्हारे भीतर का द्रष्टा तुम्हारा पा लिया
'कि तुम अपनी अनुभूतियों को भी देख अमरत्व है। लेकिन एक क्षण के लिए भी तब से मैंने शरीर की अनुभूतियों, सकते हो. तो फिर अपनी भावदशाओं को यह मत सोचो, "मैंने पा लिया," क्योंकि विचारों और भावों का द्रष्टा होने देखना शरू करो, जो कि अनुभूतियों से तब भी उसी क्षण तुम चूक जाते हो। का प्रयास किया है। अधिकांशतः, अधिक सूक्ष्म भी हैं और अस्पष्ट भी। अवलोकन एक सनातन प्रक्रिया है; तुम
तो मैं उन्हीं में पकड़ा जाता हूं, द्रष्टा होने का चमत्कार यह है कि जब गहन से गहनतर होते जाते हो, लेकिन ऐसे लेकिन कभी-कभार मैं बिलकुल तुम शरीर को देखते हो तो तुम्हारा द्रष्टा अंतिम छोर पर तुम कभी नहीं पहुंचते जहां
अधिक मजबूत होता है; जब तुम अपने कह सको “मैंने पा लिया" । बल्कि जितने और कछ भी ठहरता नहीं-बस विचारों को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा और गहरे तुम जाते हो उतना ही तुम्हें बोध होता चलता रहता है। क्या कहै भी मजबूत होता है; और जब अनुभूतियों है कि तुम एक ऐसी प्रक्रिया में प्रवेश कर जो किया जा सकता है?
को देखते हो, तो तुम्हारा द्रष्टा फिर और गए जो सनातन है-अनादि और अनंत। मजबूत होता है। जब तुम अपनी लेकिन लोग बस दूसरों को देख रहे हैं;
विशा.
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