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________________ यदि यह विचार मनुष्यों में फैल जाए और सभी जीवन में आनंदित होने लगें तो पुरोहितों का क्या होगा ? संतों का क्या होगा ? स्वर्ग और नरक और परमात्मा की उनकी पौराणिक कहानियों का क्या होगा ? सब कुछ हवा में विलीन हो जाएगा। कम से कम मेरे लिए, उमर खय्याम संबुद्ध सूफी संतों में से एक है, और वह जो कह रहा है उसमें अथाह सत्य है। उसका यह अभिप्राय नहीं है कि तुम पाप करो। उसका इतना ही अर्थ है कि तुम्हें अपराध-भाव अनुभव नहीं करना चाहिए। जो भी तुम करते हो - यदि वह सही नहीं है, तो उसे फिर से मत करो। यदि तुम्हें लगता है कि इससे किसी को दुख होता है, तो उसे दोबारा मत करो। लेकिन अपराधी अनुभव करने की जरूरत नहीं है, पश्चात्ताप करने की, प्रायश्चित करने की, तपस्या करने की और स्वयं को 271 ओशो से प्रश्नोत्तर प्रताड़ित करने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारा फोकस पूरी तरह बदलना चाहता हूं। बजाय इसको गिनने के कि कितनी बार तुम सजग होना भूले, उन थोड़े से सुंदर क्षणों की गिनती करो जब तुम स्फटिक की तरह स्पष्ट और सजग थे। वे थोड़े से क्षण तुम्हें बचाने के लिए, तुम्हारा उपचार करने के लिए पर्याप्त हैं। और यदि तुम उन पर ध्यान दो तो वे तुम्हारी चेतना में बढ़ते और फैलते चले जाएंगे। धीरे-धीरे बेहोशी का सारा अंधकार मिट जाएगा। प्रारंभ में कई बार तुम्हें यह भी लगेगा कि शायद कार्य करना और सजग रहना साथ-साथ संभव नहीं है। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि यह न केवल संभव है, बल्कि बहुत ही सरलता से संभव है। बस जरा ठीक ढंग से शुरू करो। क्ष त्र ज्ञ से शुरू मत करो; क ख ग से शुरू करो। जीवन में हम गलत शुरुआत के कारण कई चीजें चूकते चले जाते हैं। हर चीज बिलकुल प्रारंभ से शुरू करनी चाहिए । हमारे मन अधीर हैं; हम सबकुछ जल्दी से करना चाहते हैं। हम सीढ़ी के हर सोपान से गुजरे बिना उच्चतम बिंदु पर पहुंचना चाहते हैं। लेकिन उसका अर्थ होगा पूर्ण असफलता । और सजगता जैसी चीज में तुम एक बार असफल हो गए तो यह कोई छोटी असफलता नहीं है— शायद तुम फिर कभी भी इसका प्रयास नहीं करोगे । असफलता दुखती है। तो जो भी चीज सजगता जैसी मूल्यवान हो— क्योंकि यह अस्तित्व के रहस्यों के सारे द्वार खोल सकती है, यह तुम्हें परमात्मा के मंदिर पर पहुंचा सकती है— इन्हें तुम्हें बड़ी सावधानी से शुरू करना चाहिए और आरंभ से ही फूंक-फूंक कर चलो। थोड़ा-सा धैर्य, और लक्ष्य बहुत दूर नहीं है। 9
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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