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________________ ओशो से प्रश्नोत्तर श्वास-प्रश्वास की तरह हो जाती उपयोग करो। लौट तो आई है। है-तुम्हें उसके लिए कोई प्रयास नहीं एक दिन आता है, जब संसार में ऐसा इसे कोई पश्चात्ताप, कोई करना पड़ता, वह सहज हो जाती कोई कृत्य नहीं रहता जिसे पूरी समग्रता से अपराध-भाव, कोई उदासी मत है-फिर किसी भी कृत्य में, किसी भी करते हुए भी तुम उसमें सजग नहीं रह बनाओ-क्योंकि अपराधी और दुखी कार्य में तुम सजग हो सकते हो। सकते। होने से तुम्हारा कोई भला नहीं होने वाला। लेकिन शर्त याद रखोः वह प्रयासरहित तुम कह रहे हो, “जब मैं कार्य में सजग गहरे में तुम असफल अनुभव करोगे। और होनी चाहिए; उसे सहजता से आना होने का निर्णय लेता हूं तो सजगता के एक बार असफलता का भाव तुममें चाहिए। फिर चित्र बनाते हुए या संगीत विषय में भूल जाता हूं।" यह तुम्हारा बैठ जाए, तो सजगता और भी कठिन रचते हुए, या नाचते हुए, या तलवार निर्णय नहीं, तुम्हारी लंबी साधना होनी हो जाएगी। लेकर किसी शत्रु से लड़ते हुए भी तुम चाहिए। और सजगता सहज ही आनी अपना पूरा फोकस बदल डालो। यह पूर्णतः सजग रह सकते हो। लेकिन यह चाहिए; तुम्हें इसे बुलाना नहीं है, इससे बड़ी बात है कि तुम इस बात के प्रति सजगता वह नहीं है जिसके लिए तुम जबरदस्ती नहीं करनी है। सजग हो गए कि तुम सजग होना भूल गए प्रयास कर रहे हो। यह शुरुआत नहीं है; “और जब मुझे यह बोध होता है कि मैं थे। अब जितनी देर तक संभव हो सके, यह तो एक लंबी साधना की परिणति है। सजग नहीं था तो दोषी अनुभव करता हूं।" मत भूलो। फिर दोबारा तुम भूलोगे; फिर कई बार यह बिना प्रशिक्षण के भी घट यह बिलकुल मूढ़ता है। जब तुम्हें यह बोध से तुम्हें स्मरण आएगा-लेकिन हर बार, सकती है। हो कि तुम सजग नहीं थे, तो प्रसन्न होओ विस्मृति का अंतराल छोटा से छोटा होता लेकिन ऐसा कभी-कभार ही हो सकता कि कम से कम अब तो तुम सजग हो। जाएगा। यदि तुम अपराध-भाव से बच है-बिलकुल अति की परिस्थितियों में। अपराध-भाव की धारणा का मेरी देशना में सको-जो कि मूलतः क्रिश्चियन है-तो रोजमर्रा के जीवन में तुम्हें सहज क्रम का कोई स्थान नहीं है। तुम्हारी विस्मृत के अंतराल छोटे होते पालन करना चाहिए। पहले ऐसे कृत्यों के अपराध-भाव आत्मा में लगने वाले जाएंगे, और एक दिन वे बस समाप्त हो प्रति सजग होना शुरू करो जिनमें तुम्हारी कैंसरों में से एक है। और सभी धर्मों ने जाएंगे। सजगता तुम्हारी श्वास-प्रश्वास संबद्धता नहीं चाहिए। तुम टहल सकते तुम्हारी गरिमा, तुम्हारे गौरव को नष्ट करने या धड़कन या रक्त प्रवाह की तरह हो हो और सोचते जा सकते हो; खाते रह के लिए, और तुम्हें गुलाम बनाने के लिए जाएगी-दिन हो कि रात। सकते हो और विचारते चले जा सकते हो। अपराध-भाव का उपयोग किया है। तो सावधान रहो कि कहीं तुम्हें सोच-विचार के स्थान पर सजगता को ले अपराधी अनुभव करने की कोई जरूरत अपराध-भाव न अनुभव हो। अपराधी आओ। खाते रहो, और सजग रहो कि तुम नहीं, यह स्वाभाविक है। सजगता इतनी अनुभव करने को कुछ भी नहीं है। यह खा रहे हो। चलो, और सोच-विचार महत घटना है कि कुछ सैकेंड के लिए भी बड़े सौभाग्य की बात है कि वृक्ष के स्थान पर सजगता को ले आओ। चलते सजग हो सको, तो आह्लादित होओ। उन कैथोलिक पादरियों की नहीं सुनते। वरना रहो; शायद तुम्हारा चलना थोड़ा धीमा क्षणों पर कोई बहुत ध्यान दो जब तुम भूल तो वे गुलाब को अपराध-भाव से भर देंगे और अधिक प्रसादपूर्ण हो जाए। लेकिन जाते हो। उस अवस्था पर ध्यान दो जब कि "तुममें कांटे क्यों हैं?" और जो गुलाब सजगता ऐसे छोटे-छोटे कृत्यों के साथ ही अचानक तुम्हें स्मरण आता है, “मैं सजग हवा में, वर्षा में, सूर्य की रोशनी में नाच संभव है। और जैसे-जैसे तुम ज्यादा नहीं था।" धन्यभागी अनुभव करो कि रहा था, वह अचानक उदास हो जाएगा। कुशल होते हो तो ज्यादा जटिल कृत्यों का कुछ घंटों के बाद कम से कम सजगता नृत्य विदा हो जाएगा; आनंद विदा हो 269
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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