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ओशो से प्रश्नोत्तर
यह सदा धीरे-धीरे ही घटता है। एक-एक बूंद करके पूरा सागर भर सकता है। यह बूंद-बूंद करके ही होता है। बूंदों में महा
सागर चला आ रहा है। तुम तो बस अनुग्रह से, उत्सव से, धन्यवाद से भरकर उसे ग्रहण करो।
और मन को रोकने की कोशिश मत करो। मन को उसकी गति से चलने दो-तुम देखते रहो।
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