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________________ ओशो से प्रश्नोत्तर आएगी। वे अरचनात्मक लोग हैं; उन्होंने रहे हो। जाएगा। और उस स्वाद के कारण, कुछ भी सृजन नहीं किया। वे बस बैठे तुममें महत्वाकांक्षा है और मन को धीरे-धीरे तुम अधिकाधिक परिस्थितियां रहते हैं। वे बस किसी तरह घिसट रहे हैं; रोकने की कोशिश करते हो? महत्वाकांक्षा निर्मित करोगे जिनमें वह और-और घटे। वे जिंदा लोग नहीं हैं। उन्होंने संसार की गति पैदा करती है, तो तुम गति को बढ़ा “क्या मैं अपना समय व्यर्थ कर रहा किसी भी तरह कोई मदद नहीं की है। रहे हो-और फिर मन पर ब्रेक लगाते हूं?" उन्होंने तो कोई चित्र या कोई कविता या हो। तुम मन के पूरे सूक्ष्म मैकेनिज्म को समय तो तुम व्यर्थ कर ही नहीं सकते, कोई गीत तक नहीं रचा, क्योंकि कविता नष्ट कर दोगे, और मन बड़ी नाजुक घटना क्योंकि समय पर तुम्हारा अधिकार नहीं रचने के लिए भी तुम्हें प्रतिभा चाहिए, है, पूरे अस्तित्व में सबसे नाजुक घटना है। है। तुम वही चीज व्यर्थ कर सकते हो जिस बुद्धि के गुण चाहिए। तो इस बारे में कोई मूढ़ता मत करो। पर तुम्हारा अधिकार हो। समय पर तुम्हारा ___ मैं यह सलाह नहीं दूंगा कि तुम मन को मन को रोकने की कोई जरूरत नहीं है। अधिकार नहीं है। समय तो व्यर्थ होगा ही, रोको, बल्कि उसे समझो। समझने से एक तुम कहते होः “मुझे कभी मौन का चाहे तुम ध्यान करो या न करो-समय तो चमत्कार घटता है। चमत्कार यह होता है अनुभव नहीं होता, और जो भी साक्षीभाव व्यर्थ होगा। समय दौड़ा जा रहा है। तुम कि समझने के कारण, धीरे-धीरे, जब घटता है वह एक चौंध के जैसा क्षणिक कुछ भी करो, कुछ करो या कुछ न भी कारण तुम्हें समझ में आ जाते हैं और तुम होता है।" प्रसन्न होओ! इसका भी बड़ा करो, समय चला जा रहा है। समय को उन कारणों में गहरे झांक लेते हो, तो उन मूल्य है। ये झलकें साधारण झलकें नहीं तुम बचा नहीं सकते तो व्यर्थ किस तरह कारणों में गहरे झांकने से ही, वे कारण हैं। उन्हें ऐसे ही मत लो! लाखों लोग हैं कर सकते हो? व्यर्थ तुम उसी चीज को मिट जाते हैं, और मन धीमा पड़ जाता है। जिन्हें वे छोटी-छोटी झलकें भी नहीं मिली कर सकते हो जिसको बचा सको। समय लेकिन प्रतिभा नहीं खोती, क्योंकि इसमें हैं। वे जिएंगे और मर जाएंगे और उन्हें पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। इस बारे में मन पर जोर नहीं डाला जाता। कभी पता भी नहीं चलेगा कि साक्षी क्या भूल जाओ! यदि तुम समझ के द्वारा कारणों को नहीं है-एक क्षण के लिए भी। तुम प्रसन्न और समय का सबसे अच्छा उपयोग मिटाते तो तुम क्या कर रहे हो? उदाहरण होओ, तुम भाग्यशाली हो। तुम ये छोटी-छोटी झलकें लेने में कर के लिए, जैसे तुम एक कार चला रहे हो, लेकिन तुम अनुगृहीत नहीं हो रहे हो। सकते हो क्योंकि अंततः तुम पाओगे कि उसका एक्सेलरेटर दबाते चले जाओ और यदि तुम अनुगृहीत नहीं होओगे तो वे वे क्षण ही बचे जो साक्षी के क्षण थे और साथ ही साथ उसकी ब्रेक भी लगाते रहो। झलकें भी विलीन हो जाएंगी। अनुगृहीत बाकी सबकुछ व्यर्थ गया। जो धन तुमने तुम कार का पूरा मैकेनिज्म खराब कर होओ, और वे बढ़ेगी। अनुग्रह से सब कमाया, जो प्रतिष्ठा तुमने अर्जित की, जो दोगे। और हर संभावना है कि तुम्हारी कोई कुछ बढ़ता है। प्रसन्न होओ कि तुम धन्य आदर-सम्मान कमाया, वह सब व्यर्थ दुर्घटना होगी। दोनों काम एक साथ नहीं हो-और वे झलकें बढ़ जाएंगी। उस गया। वही क्षण, केवल वही थोड़े से क्षण किए जा सकते। यदि ब्रेक लगा रहे हो तो विधायकता से चीजें विकसित होंगी। बचे जिनमें तुम्हें साक्षीभाव की झलकें एक्सेलरेटर को मत छेड़ो; उसे दबाओ “और जो भी साक्षीभाव घटता है वह मिलीं। जब तुम यह जीवन छोड़ोगे तो यही मत। और यदि एक्सेलेरेटर दबा रहे हो, तो क्षणिक होता है।"... क्षण तुम्हारे साथ जाएंगे-केवल वे ही ब्रेक मत लगाओ। दोनों काम एक साथ तो क्षणिक होने दो! यदि एक क्षण के क्षण जा सकते हैं, क्योंकि वे क्षण शाश्वत मत करो, वरना तुम पूरा मैकेनिज़्म खराब छोटे से हिस्से के लिए भी साक्षीभाव घट के हैं, उनका संबंध समय से नहीं है। कर दोगे। तुम दो विरोधाभासी चीजें कर सके, तो वह घटा; तुम्हें उसका स्वाद मिल आह्लादित होओ कि ऐसा घट रहा है।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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