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ओशो से प्रश्नोत्तर
साक्षी हो और कुछ भी नहीं। तुम एक रात, जागते-सोते वह सदा सक्रिय रहा खिलाया-पिलाया जाता है। वह बच्चा देखने वाले हो जो किसी भी सुखद बात से है-अचानक वह विलीन हो जाता है। धीरे-धीरे बड़ा होता चला जाता है और तादात्म्य कर लेता है और भूल जाता है कि तुम चारों ओर देखते हो और सब अंततः पूरे बोतल को अपनी आकृति से सुखद के पीछे उसकी छाया की तरह दुखद खाली है, सब शून्य है। और मन के साथ भर डालता है। अब वह इतना बड़ा हो भी चला आ रहा है।
ही अहंकार भी विलीन हो जाता है। गया है कि वह बोतल के मुंह से बाहर नहीं तुम मन के सुखद हिस्से से तकलीफ फिर बच रहती है चैतन्य की एक निकल सकता; बोतल का मुंह अब छोटा नहीं पाते-तुम तो उसका मजा लेते हो। गुणवत्ता जिसमें कोई 'मैं नहीं होता। ज्यादा पड़ गया है। और पहेली यह कहती है कि तकलीफ आती है जब विपरीत ध्रुव सक्रिय से ज्यादा तुम उसे “हूं-पन" से मिलता तुम्हें हंस को बाहर निकालना है—बिना हो जाता है; तब तुम टूट-फूट जाते हो। हुआ कह सकते हो, लेकिन “मैं-पन" बोतल को तोड़े और बिना हंस को मारे। लेकिन तुमने ही सारे तकलीफ की नहीं कह सकते। इसे "है-पन" कहना अब यह बुद्धि चकराने वाली बात है। शुरुआत की थी। एक साक्षी होने से गिर और भी ज्यादा सही होगा, क्योंकि तुम क्या कर सकते हो? हंस बहुत बड़ा हो कर तुमने तादात्म्य बना लिया।
"हूं-पन" में भी "मैं" की कुछ न कुछ गया है, और तुम उसे बिना बोतल को तोड़े __ अदम और ईव के पतन की बाइबिल छाया बनी ही रहती है। जिस क्षण तुम बाहर नहीं निकाल सकते, लेकिन तुम्हें वाली कहानी मात्र एक कल्पना है, लेकिन इसके “है-पन" को जान लेते हो, उस ऐसा करने की अनुमति नहीं है। या तुम यह है वास्तविक पतन : साक्षी होने की क्षण यह ब्रह्मांडीय हो जाता है।
उसे मार कर बाहर निकाल सकते हो; तब अवस्था से नीचे गिर कर किसी चीज से मन के विलीन होते ही "मैं" भी विलीन तुम इस बात की चिंता नहीं करते कि हंस तादात्म्य कर लेना और अपना साक्षित्व हो जाता है। साथ ही और भी अनेक चीजें मर गया है। लेकिन उसे मारने की भी खो बैठना।
विलीन हो जाती हैं, जो तुम्हारे लिए बहुत अनुमति नहीं है। कभी प्रयोग करके देखोः मन जो भी है महत्वपूर्ण थीं, जो तुम्हारे लिए बहुत दिन-ब-दिन शिष्य इस पहेली पर उसे वैसा ही रहने दो। स्मरण रखोः तुम तकलीफदेह थीं। तुम उन्हें हल करने की ध्यान करता है; कोई रास्ता नहीं निकाल मन नहीं हो। और तुम एक बड़े आश्चर्य कोशिश कर रहे थे और वे अधिक से पाता। हर पहलू से विचार करता है, का सामना करने वाले हो। जैसे-जैसे अधिक जटिल बनती जा रही थीं; हर बात लेकिन वास्तव में इसका कोई हल नहीं है। तुम्हारा मन से तादात्म्य कम होने लगता एक समस्या थी, एक चिंता थी, और उससे थक गया, बिलकुल निर्जीव-सा हो है, मन कम शक्तिशाली होने लगता है छुटकारे का कोई रास्ता नहीं दिखता था। गया-अचानक एक अंतर्दृष्टि घटित क्योंकि उसकी शक्ति तुम्हारे तादात्म्य से मैं तुम्हें एक बोधकथा का स्मरण होती है। अचानक वह समझ पाता है कि आती है; वह तुम्हारा खून चूसता है। दिलाऊंगा जिसका शीर्षक है-"हंस सद्गुरु की रुचि बोतल में या हंस में नहीं लेकिन जब तुम दूर और तटस्थ खड़े होने मुक्त हो गया है।" इसका संबंध तुम्हारे हो सकती; शायद ये किसी दूसरी चीज के लगते हो, मन छोटा होने लगता है। मन और तुम्हारे 'है-पन' से है। प्रतीक हैं।
जिस दिन मन से तुम्हारा तादात्म्य टूटता एक झेन सद्गुरु अपने शिष्य से एक मन बोतल है और तुम हंस है-एक क्षण के लिए भी-तब एक कोआन, एक पहेली पर ध्यान करने को हो...लेकिन साक्षी की साधना से इस रहस्योदघाटन होता है : मन मर जाता है, कहते हैं। हंस का एक छोटा-सा बच्चा पहेली का हल हो जाता है। तुम मन से मन बच नहीं रहता। जहां वह इतना भरपूर एक बोतल के अंदर डाल दिया जाता है, इतना ज्यादा तादात्म्य कर सकते हो कि था, इतना सतत चल ही रहा था—दिन फिर उसे बोतल के भीतर ही तुम अनुभव करना शुरू कर दो कि तुम
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