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________________ ओशो से प्रश्नोत्तर सजग बना रहता है। साक्षी हुआ व्यक्ति लेकिन संसार के न होनाः यह है साक्षी तुम तुरंत प्रतिक्रिया करते हो। तुम बुद्ध का वेई-वू-वेई की अवस्था में है। यह चेतना का अर्थ। अपमान करो-वे प्रतिक्रिया नहीं करते, वे लाओत्सू का शब्द है। इसका अर्थ यही है मेरा अर्थ तुम्हें बार-बार यह कृत्य करते हैं। प्रतिक्रिया दूसरे पर है-अक्रिया से निकली हुई क्रिया। साक्षी कहने का कि जागरूक रहो। मैं कृत्य के आधारित है : कोई दूसरा तुम्हारा एक बटन वह व्यक्ति नहीं है जिसने जीवन से विरोध में नहीं हूं लेकिन तुम्हारे कृत्य होश दबाता है और तुम बस एक शिकार हो, पलायन किया है। वह जीवन को जीता से आलोकित होने चाहिए। वे लोग जो एक गुलाम; तुम एक मशीन की तरह है-कहीं अधिक समग्रता से, कहीं कर्म के विरोध में है, वे दमनकारी ही होने व्यवहार करते हो। अधिक सप्राण, लेकिन कहीं गहरे में एक वाले हैं, और सब प्रकार के दमन तुम्हें एक सच्चा व्यक्ति जो जानता है कि साक्षी बना रहता है, वह सतत स्मरण रुग्ण बनाते हैं-स्वस्थ नहीं, संपूर्ण नहीं। होश क्या है, वह प्रतिक्रिया कभी नहीं रखता है : “मैं चैतन्य हूं।" मठों में रहने वाले भिक्षु–चाहे वे : करता है; वह अपने स्वयं के होश के इसका प्रयोग करो। सड़क पर चलते कैथोलिक हों या हिंदू, जैन साधु हों या आधार पर कृत्य करता है। उसका कृत्य हुए स्मरण रखो कि तुम चैतन्य हो। चलना बौद्ध भिक्षु-जो जीवन को छोड़कर उससे दूसरे के कर्म पर आधारित नहीं होता; कोई तो जारी रहता है और एक नई बात जुड़ पलायन कर गए हैं-वे सच्चे संन्यासी दूसरा व्यक्ति उसका बटन नहीं दबा जाती है-एक नया सौंदर्य, एक नया नहीं हैं। उन्होंने अपनी इच्छाओं का दमन सकता। यदि उसे सहजता से लगता है कि ऐश्वर्य जुड़ जाता है। बाह्य कृत्य में एक कर लिया है, और वे संसार से, कर्म के यह करना सही है तो वह उसे करता है; आंतरिक गुणवत्ता जुड़ जाती है। तुम चेतना संसार से दूर हट गए हैं। यदि तुम कर्म यदि उसे लगता है कि यह अनावश्यक है, की एक लपट बन जाते हो, और तब के संसार से ही दूर हट गए हो, तो तुम तो वह शांत और निष्क्रिय बना रहता है। चलने में एक नया ही आनंद आ जाता है। फिर कहां साक्षी बन पाओगे। होशपूर्ण वह दमनकारी वृत्ति का नहीं है; वह हमेशा तुम पृथ्वी पर हो लेकिन तुम्हारे पैर पृथ्वी होने के लिए कर्म का संसार ही सबसे खुला हुआ और अभिव्यक्ति-उन्मुख है। को बिलकुल नहीं छूते। अच्छा अवसर है। वह तुम्हें चुनौती देता उसकी अभिव्यक्ति बहु-आयामी है। गीत यही तो बुद्ध ने कहा है : नदी से गुजरो, है; वह सतत एक चुनौती बना रहता में, काव्य में, नृत्य में, प्रेम में, प्रार्थना में, लेकिन पानी तुम्हारे पैरों को न छुए। है। या तो तुम मूर्छा में पड़ जाओ और करुणा में वह बहता है। पूरब के प्रतीक कमल का यही अर्थ है। एक कर्ता बन जाओ-तब तुम एक यदि तुम होशपूर्ण नहीं होते, तब केवल तुमने बुद्ध की मूर्तियां या चित्र देखे संसारी व्यक्ति, एक स्वप्न देखने वाले, दो संभावनाएं रहती हैं: या तो तुम होंगे-कमल के फूल पर विराजमान; यह भ्रांतियों के एक शिकार हो-और या तुम दमनात्मक होते हो, या फिर अति-भोग में एक रूपक है। कमल एक ऐसा फूल है जो साक्षी बन जाओ और संसार में रहना जारी रत होते हो। दोनों ही हालत में तुम बंधन में पानी में रहता है, लेकिन पानी उसे स्पर्श रखो।. तब तुम्हारे कर्म की एक अलग बने रहते हो। नहीं कर सकता। कमल किसी हिमालय ही गुणवत्ता होती है-वह सच में ही कृत्य की गुफा में पलायन नहीं करता; वह पानी होता है। जो होशपूर्ण नहीं हैं, उनके कृत्य मठ के बाहर ही एक भिक्षुणी पर में रहता है और फिर भी पानी से वास्तव में क्रियाएं नहीं हैं लेकिन बलात्कार कर दिया गया था। अंततः जब बहुत-बहुत दूर बना रहता है। बीच बाजार प्रतिक्रियाएं हैं। वे केवल प्रतिक्रियाएं इस घटना का पता चला, तब वह भिक्षुणी में रहना लेकिन बाजार को अपने अंतस में करते रहते हैं। मठ के अंदर ले जाई गई और पास के एक प्रविष्ट न होने देना; संसार में होना, कोई तुम्हारा अपमान कर देता है और डॉक्टर को बुलाया गया। 244
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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