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________________ ध्यान में बाधाएं अंतराल उभरेंगे। लेकिन क्योंकि तुम्हें ऐसा तो उसकी विशेषता है। ऐसा फिर-फिर, बहुत बार हो सकता 'लग' रहा है कि विचार की प्रक्रिया रुक एक बार तुमने भीतर की संपदा का है। और शिष्य गुरु से बहुत विक्षुब्ध हो गई, तो यह भी एक विचार हो गया, एक अनुभव कर लिया, एक बार तुम अपने सकता है कि जब भी उसे लगे कि उसे बहुत ही सूक्ष्म विचार हो गया। तुम क्या अंतर्तम के संपर्क में आ गए, फिर तुम मिल गया है, तो गुरु वह सब उससे वापस कर रहे हो? तुम भीतर कह रहे हो, कृत्य में जा सकते हो, फिर तुम जो चाहो छीन लेता है और उसको अज्ञानी अवस्था "विचार की प्रक्रिया रुक गई है।" लेकिन कर सकते हो, फिर तुम साधारण में वापस फेंक देता है। यह क्या है? यह तो दूसरी विचार प्रक्रिया सांसारिक जीवन जी सकते हो, लेकिन उदाहरण के लिए एक जर्मन संन्यासी के शुरू हो गई। और तुम कहते हो, “यह शून्यता बनी रहेगी। उसे तुम भूल नहीं साथ लगातार ऐसा हो रहा था उसे शून्यता है।" तुम कहते हो, “अब कुछ सकते। वह भीतर बनी रहेगी। उसका बार-बार लगता कि वह बुद्धत्व को होने वाला है।" यह क्या है? फिर से एक संगीत सुनाई देता रहेगा। तुम जो भी उपलब्ध हो गया है। और भ्रम की प्रगाढ़ता विचार प्रक्रिया शुरू हो गई। करोगे, वह करना परिधि पर ही रहेगा, ऐसी थी कि वह उसे अपने तक ही नहीं फिर कभी ऐसा हो तो इसके शिकार मत __ भीतर तो तुम शून्य रहोगे। रख सकता था, वह दूसरों को भी बताता। होना। जब तुम्हें लगे कि एक मौन उतर वह बहुत निश्चयात्मक था। तीन बार रहा है, तो उसका शब्दीकरण शुरू मत मन तुम्हें छल सकता है ऐसा हुआ, और अपनी निश्चयात्मकता के करना, क्योंकि उससे तुम मौन को नष्ट कारण ही मेरे आशीष लेने के लिए वह कर दोगे। प्रतीक्षा करो-किसी के लिए भारत आया। अब इससे पता चलता है कि नहीं-बस प्रतीक्षा मात्र करो। कुछ करो से ढांचे हैं जिनमें साधक फंस उसे कितना विश्वास था—वह मेरे मत। मत कहो कि “यह शून्यता है।" जिस जाता है। , आशीष तक लेने के लिए आ गया। क्षण तुमने यह कहा, तुमने उसे नष्ट कर पहली बातः अधिकांश साधक हर बार मुझे उससे कहना पड़ता, “तुम दिया। बस इसे देखो, इसमें प्रवेश करो, इस भ्रामक धारणा में भटक जाते हैं कि वे स्वयं के मन द्वारा ही छले जा रहे हो। कुछ इसका साक्षात्कार करो-लेकिन रुको, पहुंच गए। यह ऐसे स्वप्न की तरह है भी तुम्हें हुआ नहीं है, तुम वही पुराने इसको शब्द मत दे देना। ऐसी जल्दी भी जिसमें तुम्हें लगे कि तुम जागे हुए हो। मनुष्य हो–नया मनुष्य अभी प्रकट नहीं क्या है? शब्द देकर मन दूसरे दरवाजे से अभी भी तुम सपना देख रहे हो-जागे हुआ है। और जो भी तुम कर रहे प्रवेश कर गया, और तुम छल लिए गए। हुए होने का यह भाव तुम्हारे स्वप्न का हो-सरकारों को, संयुक्तराष्ट्र को जो पत्र मन की इस चाल के प्रति जागे रहो। हिस्सा है। ऐसा ही साधक के साथ होता लिख रहे हो-ये सब अहंकार के उपाय शुरू-शुरू में तो यह होगा ही, तो जब है। हैं। तुम अहंकार की पकड़ में हो।" । भी ऐसा हो, प्रतीक्षा करो। जाल में मत मन यह भ्रम खड़ा करने में सक्षम है कि सुंदर स्वप्न में जीना बहुत सरल है। फंसो। कुछ भी मत कहो, मौन रह जाओ। ___ “अब तो कहीं और जाने को नहीं रहा, मैं वास्तविकता से अपने सपनों को चकनाचूर फिर तुम शून्यता में प्रवेश करोगे, और पहुंच गया।" मन धोखेबाज है। और ऐसी होते देख पाना बहुत कठिन है। फिर यह घटना क्षणिक नहीं होगी, क्योंकि परिस्थिति में सद्गुरु का कार्य यह है कि पूर्व के प्राचीन ग्रंथों में इसे माया की एक बार तुम्हें वास्तविक शून्यता का पता तुम्हें सचेत करे कि यह वास्तविकता नहीं शक्ति कहते हैं। मन के पास कोई भी भ्रम चल जाए तो फिर उसे खो नहीं सकते। है; यह सपना भर है और अभी तुम कहीं पैदा कर लेने की सम्मोहन शक्ति है। यदि वास्तविक को खोया नहीं जा सकता; यही पहुंचे नहीं हो। बड़ी उत्कट आकांक्षा से तुम किसी चीज 237
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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