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ध्यान में बाधाएं
मन की चालबाजियां
चेतना का विषय हुआ। मुझमें ऊब उठे तो ऊब विषय हो गई। तुम्हें मौन का भी अनुभव हो सकता है, तब मौन एक विषय बन जाएगा। तुम्हें आनंद का अनुभव हो सकता है, तब आनंद एक विषय होगा। तो तुम विषय बदलते चले जा सकते हो-अनंत रूप से यह क्रम चल सकता है लेकिन यह असली बात नहीं है। __ वास्तविक तो वह है जिसको ये सारे अनुभव होते हैं जिसे ऊब होती है, जिसे आनंद होता है। आध्यात्मिक खोज 'क्या होता है' के लिए नहीं, 'किसे होता है' के लिए है। फिर अहंकार के उठने की कोई संभावना नहीं है।
अनुभूतियों के द्वारा मत ठगे जाओ
सभी अनुभूतियां मन की ही चालबाजियां हैं, हर अनुभव एक पलायन है। ध्यान कोई अनुभूति नहीं, एक बोध है। ध्यान कोई अनुभूति नहीं, वरन, सब अनुभूतियों का समाप्त हो जाना है।
27नुभव तुमसे बाहर है। अनुभोक्ता तुम्हारा रस उनमें नहीं होगा, तुम इन।
तुम्हारी अंतस सत्ता है। और पगडंडियों पर भटक न जाओगे। तुम तो वास्तविक तथा मिथ्या आध्यात्मिकता में उस अंतर्केद्र की ओर बढ़ते चले जाओगे यही भेद है : यदि तुम अनुभूतियों के पीछे जहां तुम्हारे एकांत को छोड़कर और कुछ ध्यान में कभी-कभी तुम्हें एक दौड़ रहे हो, तो आध्यात्मिकता झूठी है; भी शेष नहीं रहता। केवल चेतना बच ना प्रकार की शून्यता का अनुभव यदि अनुभोक्ता में तुम्हारा रस है, तो फिर रहती है बिना किसी विषय के।
होता है जो कि वास्तव में शून्यता नहीं है। तुम्हारी आध्यात्मिकता वास्तविक है। फिर विषय है अनुभव; अनुभव जो भी हो, मैं इसे “एक प्रकार की शून्यता" कहता हूं। न तो तुम्हारा रस कुंडलिनी में होगा, न वह विषय है। मुझे दुख का अनुभव होता जब तुम ध्यान में होते हो तो किन्हीं क्षणों में चक्रों में होगा; इन सब बातों में कोई रस है तो दुख मेरी चेतना का विषय हुआ। कुछ पल के लिए तुम्हें लगेगा कि विचार ही नहीं होगा। वह सब घटेगा तो, लेकिन फिर मुझे सुख का अनुभव होता है तो सुख की धारा रुक गई है। शुरू-शुरू में ये
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