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________________ सामना हुआ, क्रोध से साक्षात्कार हुआ। तुम क्रोध की चीर-फाड़ नहीं करते। तुम उसके स्रोत तक जाने की चिंता नहीं लेते, क्योंकि स्रोत तो अतीत में है। तुम उसके संबंध में कोई निर्णय नहीं लेते, क्योंकि निर्णय लेने के क्षण से ही सोच-विचार शुरू हो जाता है। तुम कोई शपथ भी नहीं लेते कि "मैं अब क्रोध नहीं करूंगा । " क्योंकि शपथ लेना तुम्हें भविष्य में ले जाता है। होशपूर्ण होने में तुम क्रोध की घटना के साथ होते हो – अभी और यहां । क्रोध को बदलने में तुम्हारी कोई रुचि नहीं है, उसके बारे में सोच-विचार करने में तुम्हारी कोई रुचि नहीं है। तुम्हारी तो रुचि है कि तुम क्रोध को सीधे, तत्काल, आमने-सामने देख भर लो । तब यह है आत्मस्मरण । और इसका यह सौंदर्य है कि यदि तुम क्रोध को देख भर सको तो क्रोध विलीन हो जाता है। न केवल क्रोध उस क्षण विलीन हो जाता है - वरन् तुम्हारे गहरे देखने से 235 ध्यान में बाधाएं उसका विलीन हो जाना तुम्हें एक कुंजी दे देता है कि संकल्प का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं है; भविष्य के लिए कोई निर्णय लेने की जरूरत नहीं है और न ही क्रोध के मूल स्रोत तक जाने की कोई जरूरत है। यह सब अनावश्यक है । अब तो तुम्हारे पास कुंजी है: क्रोध को देखो और क्रोध विलीन हो जाता है। यह देखना सदा उपलब्ध है। जब कभी क्रोध आए, तुम उसे देख सकते हो। फिर यह देखना गहराता जाता है। होशपूर्वक देखने के तीन चरण हैं। पहला : जब क्रोध घटित हो कर जा चुका है, जैसे तुम क्रमशः विलीन होती पूंछ को देखते हो - हाथी जा चुका है, केवल पूंछ दिख रही है। जब क्रोध घटित हो रहा था, तब तुम उसमें इतनी गहराई से ग्रस्त हो गए थे कि तुम होशपूर्ण हो ही न सके थे। जब क्रोध करीब-करीब विलीन हो चुका है, निन्यानबे प्रतिशत जा चुका है— केवल एक प्रतिशत, क्रोध का आखिरी हिस्सा अभी-अभी जा रहा है, दूर क्षितिज में विलीन हो रहा है - तब तुम होशपूर्ण हो जाते हो। यह है होशपूर्ण होने का पहला चरण । यह अच्छा है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। दूसरा चरण है— जब पूरा हाथी ही सामने है, पूंछ मात्र नहीं — जब क्रोध की घटना पकी हुई है; तुम क्रोध के शिखर पर हो - उबलते हुए, जलते हुए - तब तुम सजग हो जाते हो। तब फिर एक तीसरा चरण भी है : क्रोध पूरा प्रकट नहीं हुआ है, प्रकट होना शुरू हो रहा है- हाथी का सिर प्रकट हो रहा है, पूंछ नहीं। क्रोध बस तुम्हारी चेतना के दायरे में प्रविष्ट हो रहा है-और तुम सजग हो जाते हो, तब क्रोध का हाथी कभी घटित ही नहीं होता । तुमने उसे जन्म के पहले ही मार डाला। यह है जन्म-निरोध । क्रोध की घटना घटी ही नहीं; फिर यह पीछे कोई निशान भी नहीं छोड़ती है। 7
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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