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________________ 9 जीवंत होने में। सभी के पास महान संभावना है, पर समाज ने उसके प्रतिरोध में बड़ी-बड़ी चट्टानें खड़ी कर दी हैं। उसने तुम्हारे चारों ओर चीन की दीवाल खड़ी कर दी है; उसने तुम्हें बंदी बना दिया है। इन कारागृहों से बाहर निकल आना ही प्रतिभा है - और कभी दोबारा किसी और कारागृह में न घुसना। प्रतिभा का आविष्कार किया जा सकता है क्योंकि ये सारे कारागृह मौजूद हैं तुम्हारे मन में सौभाग्य से वे तुम्हारे अंतस केंद्र तक नहीं पहुंच सकते। तुम्हारे केंद्र को दूषित नहीं कर सकते, बस तुम्हारे मन को ही दूषित कर सकते हैं - तुम्हारे मन तक उनकी पहुंच है। यदि तुम अपने मन से बाहर निकल सको तो तुम ईसाइयत से, हिंदू, जैन, बौद्ध धर्म से बाहर निकल सकते हो और तब सब प्रकार के कूड़ा-कर्कट समाप्त हो जाएंगे। तुम एक पूर्ण विराम पर पहुंच जाओगे। और जब तुम मन के बाहर होते हो, उसे देखते हो, उसके प्रति जागरूक होते हो, बस एक साक्षी की भांति, तो तुम प्रतिभावान होते हो। तुम्हारी प्रतिभा खोज गई। तुमने उसे अनकिया कर दिया जो समाज ने तुम्हारे साथ किया था। तुमने उनकी सारी साजिशों का अंत कर दिया; तुमने पुरोहितों और राजनीतिज्ञों के षड्यंत्र का कर दिया - तुम उससे बाहर निकल आए, तुम एक स्वतंत्र व्यक्ति हो गए। असल में पहली बार ही तुम एक सच्चे व्यक्ति, एक प्रामाणिक व्यक्ति बने । ध्यान के विषय में अब सारा आकाश तुम्हारा है। प्रतिभा मुक्ति लाती है, प्रतिभा सहजता लाती है । 15 एकाकीपन तुम्हारा स्वभाव है काकीपन एक फूल है, तुम्हारे हृदय ● में विकसित हुआ एक कमल है। एकाकीपन विधायक है, एकाकीपन स्वास्थ्य है— तुम्हारी निजता में जीने का आनंद; तुम्हारे अपने अंतअकाश में जीने का आनंद । ध्यान का अर्थ है : अकेले होने का आनंद। तुम सच ही जीवंत होते हो जब तुम ध्यान में सक्षम हो जाते हो, जब किसी दूसरे पर, किसी परिस्थिति पर, किसी अवस्था पर कोई निर्भरता नहीं रहती। और चूंकि यह तुम्हारी अपनी स्थिति होती है, यह सदैव बनी रहती है – सुबह शाम, दिन में रात में, जवानी में या बुढ़ापे में, स्वास्थ्य में या बीमारी में। जीवन में और मृत्यु में भी यह मौजूद होता है क्योंकि यह ऐसी चीज नहीं है जो तुम्हें बाहर से घटती हो। इसका तुम्हारे भीतर से प्रादुर्भाव होता है। यह तुम्हारा अपना स्वभाव है, स्वरूप है। 16 भी नहीं । चीजों का ऐसा स्वभाव ही नहीं है; इस बारे में कुछ भी नहीं किया जा सकता। जिस क्षण तुम भीतर जाते हो, बाहर के जगत के सारे संबध टूट जाते हैं, सब से टूट जाते हैं। वास्तव में, सारा जगत विलीन हो जाता है। इतना गहन इसी कारण से, रहस्यदर्शियों ने इस जगत को 'माया' कहा है। ऐसा नहीं कि संसार नहीं है, लेकिन ध्यानी के लिए, जो भीतर जाता है उसके लिए यह जगत करीब-करीब मिट जाता है। उसका मौन जाता है कि कोई शोरगुल उसे बेधता नहीं । एकाकीपन इतना गहरा होता है कि तुम्हें बड़े साहस की जरूरत पड़ती है। पर इसी एकाकीपन से आनंद का विस्फोट होता है। इसी एकाकीपन से परमात्मा की अनुभूति होती है। दूसरा कोई मार्ग नहीं है; कभी नहीं रहा और कभी होने वाला नहीं है। 17 एकाकीपन का उत्सव मनाओ, अपने विशुद्ध अंतअकाश का उत्सव मनाओ और तुम्हारे हृदय में एक महान गीत फूटेगा । और यह जागरूकता का गीत होगा, यह ध्यान का गीत होगा, दूर से आता हुआ किसी एकाकी पक्षी का गीत होगा—किसी व्यक्ति-विशेष के लिए नहीं, पर गीत बस चल रहा अंतर्यात्रा परम एकाकीपन की ओर है। क्योंकि हृदय भरा है और गाना यात्रा है। तुम अपने साथ वहां किसी को नहीं ले जा सकते। तुम अपने केंद्र में किसी को भागीदार नहीं बना सकते - अपनी प्रेमिका या अपने प्रेमी को चाहता है, क्योंकि मेघ भरा है और बरसना चाहता है, क्योंकि फूल विकसित हो गया है और पंखुड़ियां खुल गई हैं और सुवास फैलती है— बिना किसी को संबोधित
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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