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ध्यान के विषय में
किए। अपने एकाकीपन को नृत्य बनने फिर भीड़ के मनोविज्ञान का हिस्सा नहीं दो | 18 रह जाता; वह फिर अंधविश्वासी नहीं रहेगा और उसका शोषण नहीं किया जा सकेगा और उसे भेड़ों की तरह खदेड़ा नहीं जा सकेगा; उस पर आदेश और हुक्म नहीं चलाया जा सकेगा। वह स्वयं के प्रकाश से जिएगा; वह स्वयं की अंतस प्रेरणा से जिएगा। उसके जीवन में अद्भुत सौंदर्य और एकजुटता होगी। यही भय है समाज को ।
तुम्हारा सच्चा स्वरूप
ध्यान न कुछ और नहीं बस एक उपाय है तुम्हें अपने सच्चे स्वरूप के प्रति सजग करने का - वह तुम्हारा निर्माण नहीं है; तुम वह हो ही। उसके साथ ही तुम जन्मे हो। तुम वही हो ! बस उसका आविष्कार करना है। यदि यह संभव नहीं है या समाज इसे नहीं होने देता — और कोई समाज इसे होने की सुविधा नहीं देता, क्योंकि प्रामाणिक निजता खतरनाक है : खतरनाक है स्थापित चर्च के लिए, खतरनाक है सरकार के लिए, खतरनाक है भीड़ के लिए, खतरनाक है परंपरा के लिए, क्योंकि एक बार मनुष्य अपने सच्चे स्वरूप को जान ले, फिर वह एक व्यक्ति बन जाता है; वह
एकजुट हुआ व्यक्ति आत्मनिष्ठ हो जाता है और समाज तुम्हें आत्मनिष्ठ नहीं होने देना चाहता। निजता की बजाय समाज तुम्हें एक 'पर्सनेलिटी' (व्यक्तित्व) बनना सिखाता है। 'पर्सनेलिटी' शब्द समझने जैसा है। यह 'परसोना' मूल से आता है- 'परसोना' का अर्थ है एक मुखौटा । समाज तुम्हें एक झूठी धारणा दे देता है कि तुम कौन हो; वह तुम्हें एक खिलौना थमा देता है और तुम सारा जीवन उस खिलौने से चिपके रहते हो। 19
मे
^रे देखे, करीब-करीब सभी लोग गलत जगह पर हैं। जो व्यक्ति एक अतिशय आनंदित डॉक्टर हो सकता था — चित्रकार बना बैठा है। और जो व्यक्ति एक अतिशय आनंदित चित्रकार हो सकता था — डॉक्टर बन बैठा है। कोई भी अपनी सही जगह पर नहीं लगता; इसी कारण यह सारा समाज इतनी झंझट में है। व्यक्ति को दूसरे संचालित कर रहे हैं; वह अपने अंतर्बोध से नहीं चल रहा है। ध्यान तुम्हारी अंतर्बोध की क्षमता के विकास में मदद करता है। यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि क्या तुम्हें परितृप्त करेगा, क्या तुम्हें विकसित होने में सहायक होगा। और सच्चा स्वरूप जैसा भी होगा, प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होगा। यही निजता का अर्थ है कि सभी अनूठे हैं। और अपनी इस निजता की खोज और तलाश एक बड़ी पुलक, एक बड़ा साहसिक अभियान है | 20
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