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________________ ध्यान के विषय में उसका दूसरे से कोई संबंध नहीं है। तुम लेते हो जो सदा रहता है-परिस्थितियां प्रेमपूर्ण होते हो, तुम प्रेम होते हो। तब प्रेम अकारण सतत आनद बदल जाती हैं पर वह चिरस्थायी है तब शाश्वत होता है। प्रेम तुम्हारी सुवास होता तुम बुद्धत्व के करीब आ रहे हो। 14 है। ऐसा प्रेम बुद्ध के आसपास रहा है, ना किसी कारण के तुम अचानक जरथुस्त्र के, जीसस के आसपास रहा है। अपने आप को आनंदित पाते हो। प्रतिभाः प्रत्युत्तर की क्षमता यह बिलकुल दूसरी तरह का प्रेम होता है, सामान्य जीवन में, जब कोई कारण होता है, यह गुणात्मक रूप से भिन्न होता है। 12 तभी तुम आनंदित होते हो। तुम्हारी किसी तिभा का अर्थ है प्रत्युत्तर देने की सुंदर स्त्री से मुलाकात हो जाती है और तुम क्षमता, क्योंकि जीवन एक प्रवाह आनंदित हो जाते हो; या तुम्हें धन मिल है। तुम्हें सजग रहना है और देखना है कि जाता है जिसकी तुमने सदैव आकांक्षा की तुमसे क्या मांगा जा रहा है, कि परिस्थिति थी और तुम आनंदित हो जाते हो; या तुम की क्या चुनौती है। प्रतिभावान व्यक्ति एक मकान खरीदते हो सुंदर बगीचे के साथ परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करता है और तुम आनंदित हो जाते हो, लेकिन यह और मूढ़ व्यक्ति बंधे-बंधाए उत्तरों के आनंद बहुत टिकता नहीं। ये सब क्षणिक अनुसार व्यवहार करता है। चाहे वे उत्तर हैं, ये अबाधित और सतत नहीं रह सकते। बुद्ध के हों, क्राइस्ट या कृष्ण के हों, इससे करुणा * यदि तुम्हारा आनंद किसी कारण से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपने ऊपर होता है, तो वह विलीन हो जाएगा, वह शास्त्रों को ढोता रहता है। स्वयं के ऊपर द्ध ने करुणा की परिभाषा की है। क्षणिक होगा। वह तुम्हें जल्दी ही गहरी भरोसा करने से भयभीत रहता है। "प्रेम और ध्यान का जोड़।" जब उदासी में ले जाएगा। सारे आनंद तुम्हें प्रतिभावान व्यक्ति अपनी अंतर्दृष्टि पर तुम्हारा प्रेम मात्र दूसरे को पाने की गहरी उदासी में ले जाते हैं। लेकिन एक भरोसा करता है; वह अपने अंतस पर लालसा नहीं होता, जब तुम्हारा प्रेम मात्र दूसरी तरह का आनंद भी है, जो सांकेतिक भरोसा करता है। वह स्वयं से प्रेम करता है एक जरूरत नहीं होता, जब तुम्हारा प्रेम है: तुम आनंदित हो जाते हो बिना किसी और स्वयं का सम्मान करता है। नासमझ एक सहभागिता होता है, जब तुम्हारा प्रेम कारण के। तुम बता नहीं सकते क्यों? व्यक्ति दूसरों का सम्मान करता है। एक भिखारी का नहीं वरन सम्राट का प्रेम अगर कोई पूछे, “क्यों इतने प्रसन्न हो?" प्रतिभा को फिर से आविष्कृत किया जा होता है, जब तुम्हारा प्रेम बदले में कोई तो तुम कोई उत्तर नहीं दे पाते। सकता है। उसका एक मात्र उपाय है मांग नहीं करता, बस देने को तत्पर रहता मैं नहीं बता सकता कि क्यों मैं इतना ध्यान। ध्यान बस एक काम करता है। वह है, बस देने की खुशी के लिए देता है, तब आनंदित हूं। कोई कारण नहीं सूझता। बस उन सब बाधाओं को नष्ट कर देता है जो उसके साथ ध्यान जोड़ दो और शुद्ध सुवास ऐसा है। अब यह आनंद भंग नहीं किया समाज ने निर्मित की हैं ताकि तुम प्रकट होती है, अप्रकट महिमा प्रकट होती जा सकता। अब कुछ भी हो जाए, यह प्रतिभावान न हो सको। ध्यान बस है। वह है करुणा; करुणा उच्चतम घटना बना रहेगा। यह मौजूद है हमेशा। तुम चाहे अवरोधों को हटा देता है। उसका कार्य है। यौन पाशविक है, प्रेम मानवीय है, युवा हो, तुम चाहे वृद्ध हो, तुम चाहे नकारात्मक है: यह उन चट्टानों को हटा करुणा दिव्य है। यौन शारीरिक है, प्रेम जीवित हो, तुम चाहे मर रहे हो–यह देता है जो बाधाएं बन रही हैं तुम्हारे मानसिक है, करुणा आध्यात्मिक है। 13 सदैव मौजूद है। जब तुम ऐसे आनंद को पा जलप्रवाह में, तुम्हारे झरनों के
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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