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________________ ध्यान में बाधाएं दुर्व्यव्यवस्था हो जाएगी और तुम उसमें होना। चीजों को बस देखो; उन्हें शब्द मत बन जाती हैं। ध्यान का अर्थ है: शब्दों के खो जाओगे, तुम उसमें फंस जाओगे। दो। उनकी उपस्थिति के प्रति सजग होओ, बिना जीना, किसी परिस्थिति में भाषारहित अराजकता के भय से हम बाहर की किसी लेकिन उन्हें शब्दों में मत बदलो। होकर जीना। कई बार सहज ही ऐसा हो भी चीज को पकड़े रहते हैं। लेकिन यह चीजों को बिना भाषा के रहने दो लोगों जाता है। जब तुम किसी के प्रेम में होते हो अपने जीवन को व्यर्थ करना ही है। 2 को बिना भाषा के रहने दो, परिस्थितियों तो ऐसा होता है। यदि तुम सच ही प्रेम में को बिना भाषा के रहने दो। यह असंभव हो, तो उपस्थिति महसूस होती है-कोई नहीं है; यह संभव और स्वाभाविक है। भाषा नहीं होती। जब भी दो प्रेमी वाचाल मन परिस्थिति जैसी अब है नकली है, बनाई एक-दूसरे के साथ बहुत घनिष्ठता में होते हुई है, लेकिन हम उसके इतने आदी हो हैं तो वे बहुत शांत हो जाते हैं। ऐसा नहीं है यान के मार्ग पर दूसरी बाधा गए हैं, वह इतनी यांत्रिक हो गई है कि कि अभिव्यक्त करने को कुछ है नहीं; । है-तुम्हारा लगातार अनुभव का शब्दों में जो रूपांतरण है, जो बल्कि अभिव्यक्त करने को तो अतिरेक में बड़बड़ाने वाला मन। तुम एक मिनट के अनुवाद है उसका हमें पता भी नहीं भाव हैं। लेकिन वहां कभी भी शब्द नहीं लिए भी चुप नहीं बैठ सकते, मन चलता। होते; और हो भी नहीं सकते। शब्द तभी बोलता चला जाता है: संगत-असंगत, जैसे सूर्योदय है। उसे देखने और उसे आते हैं जब प्रेम जा चुकता है। अर्थपूर्ण-अर्थहीन विचार चलते रहते हैं। शब्द देने के बीच का जो अंतराल है यदि दो प्रेमी कभी शांत न हों, यदि वे यह ट्रैफिक लगातार चलता रहता है और उसका तुम्हें कभी बोध नहीं होता। तुम सूर्य सदा बात ही कर रहे हों, तो यह इस बात सदा ही भीड़-भाड़ बनी रहती है। 3 को देखते हो, उसको अनुभव करते हो, का संकेत है कि प्रेम मर चुका। अब वे और तत्क्षण उसको शब्द दे देते हो। देखने शब्दों से उस रिक्तता को भर रहे हैं। जब म एक फूल को देखते हो और उसे और शब्द देने के बीच का जो भेद है वह प्रेम जीवित होता है तो शब्द नहीं होते, शब्द दे देते हो। तुम किसी व्यक्ति खो जाता है; उसका कभी अनुभव ही नहीं क्योंकि प्रेम की उपस्थिति ही इतनी को सड़क पार करते देखते हो और होता। उस अंतराल में, उस भेद में व्यक्ति अभिभूत करने वाली, और इतनी भेदक इस घटना को शब्द दे देते हो। मन हर को सजग हो जाना चाहिए। उसे इस तथ्य होती है कि भाषा और शब्दों के सभी बंध अस्तित्वगत चीज को एक शब्द में के प्रति सजग होना चाहिए कि सूर्योदय पार हो जाते हैं। और साधारणतया वे प्रेम अनुवादित कर लेता है, हर चीज शब्द में कोई शब्द नहीं है। यह एक तथ्य है, एक में ही पार होते हैं। बदल दी जाती है। ये शब्द अवरोध खड़ा उपस्थिति है, एक परिस्थिति है। मन ध्यान प्रेम का शिखर है : वह प्रेम है करते हैं, ये शब्द एक कारागृह बन जाते अनुभवों को यांत्रिक रूप से ही शब्दों में एक व्यक्ति की बजाय समस्त अस्तित्व के हैं। चीजों को, अस्तित्व को शब्दों में बदल लेता है। ये शब्द इकट्ठे हो जाते हैं प्रति। मेरे देखे, ध्यान उस अस्तित्व के रूपांतरित करने की ओर का यह जो प्रवाह और फिर अस्तित्व और चेतना के बीच साथ तुम्हारा जीवंत संबंध है जो तुम्हें चारों है, यही अवरोध है। ध्यानपूर्ण चित्त के अवरोध की तरह आते हैं। ओर से घेरे है। यदि तुम किसी भी लिए यह बाधा है। ध्यान का अर्थ है: शब्दों के बिना परिस्थिति के साथ प्रेम में हो सको, तो तुम तो ध्यानपूर्ण विकास की ओर पहली जीना, भाषारहित होकर जीना। फिर ये जो ध्यान में हो।... .. अनिवार्यता है अपने सतत शब्दीकरण के इकट्ठी की हुई स्मृतियां हैं, भाषागत समाज तुम्हें भाषा देता है, वह भाषा के प्रति सजग होना, और उसे रोकने में सक्षम स्मृतियां हैं, ये ध्यानपूर्ण विकास में बाधा बिना नहीं रह सकता; उसको भाषा की 228
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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