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________________ ध्यान में बाधाएं बैठ जाओ और सोचो कि तुम कौन हो। जानते, तुम्हें किस तरह जान सकते हैं? वैयक्तिकता वास्तविक है। व्यक्तित्व कई खयाल उठेगे। बस उन्हें देखते रहो कि जरा देखो सब कैसे चल रहा है, कैसे उधार है; वास्तविकता, वैयक्तिकता, वे कहां से आ रहे हैं और तुम स्रोत को सब चलता रहता है, कैसे चीजें घटती तुम्हारी प्रामाणिकता कभी उधार नहीं हो खोज ले पाओगे। कुछ बातें तुम्हारी मां से रहती हैं : एक झूठ दूसरे झूठ की ओर ले सकती। कोई नहीं बता सकता कि तुम आई हैं काफी बातें, लगभग अस्सी से जाता है। तुम करीब-करीब ठगे जाते हो, कौन हो। नब्बे प्रतिशत। कुछ तुम्हारे पिता से आता ‘छले जाते हो। तुम ठगे जाते हो और कम से कम एक काम कोई दूसरा नहीं है, कुछ तुम्हारे स्कूल के शिक्षकों से आता जिन्होंने तुम्हें ठगा है उन्होंने शायद जानकर कर सकता कि तुम्हें इस बात का उत्तर दे है, कुछ तुम्हारे मित्रों से आता है, कुछ ऐसा न किया हो। शायद वे दूसरों द्वारा दे, कि तुम कौन हो। नहीं, तुम्हें, ही जाना समाज से आता है। बस देखो: तुम सब ठगे गए हों। तुम्हारे पिता, तुम्हारी मां, होगा, तुम्हें ही अपनी अंतस-सत्ता में गहरे चीजों को अलग-अलग कर पाओगे कि तुम्हारे शिक्षक दूसरों के द्वारा छले गए खोदना होगा। पहचान की, झूठी पहचान वे कहां से आ रही हैं। कुछ भी तुम से नहीं हैं-अपने पिताओं, अपनी माताओं, की पर्त-दर-पर्त को तोड़ना होगा। आता, एक प्रतिशत भी तुम से नहीं अपने शिक्षकों के द्वारा। और बदले में जब व्यक्ति स्वयं में प्रवेश करता है तो आता। यह कैसी पहचान है, जिसमें उन्होंने तुम्हें छला है। क्या तुम अपने भय लगता है, क्योंकि भीतर दुर्व्यवस्था तुम्हारा जरा भी योगदान नहीं? और एक बच्चों के साथ भी यही करने वाले हो? मच जाती है। किसी तरह तो तुम अपनी तुम ही हो जो योगदान कर सकते एक बेहतर संसार में जहां लोग अधिक झूठी पहचान बना पाए हो; उसके साथ थे–वास्तव में, सौ का सौ प्रतिशत। प्रतिभाशाली और अधिक सजग होंगे, वे तालमेल बिठाया है। तुम जानते हो तुम्हारा जिस दिन तुम यह समझ जाते हो, धर्म अपने बच्चों को बताएंगे कि पहचान नाम यह है कि वह है; तुम्हारे पास कुछ महत्वपूर्ण हो जाता है। जिस दिन तुम्हें यह बनाने का खयाल झूठा है: “उसकी प्रतिष्ठापत्र हैं, यूनिवर्सिटी के, कॉलेज के बोध होता है तुम अपनी स्व-सत्ता में प्रवेश जरूरत है, और हम तुम्हें दे रहे हैं, लेकिन प्रमाणपत्र हैं, मान-मर्यादा है, धन है, करने की कोई विधि, कोई उपाय खोजने यह तब तक के ही लिए है, जब तक तुम जायदाद है। स्वयं को परिभाषित करने के लगते हो, कि कैसे पता चले ठीक-ठीक, स्वयं ही न खोज लो कि तुम कौन हो।" कुछ उपाय हैं तुम्हारे पास। तुम्हारी एक वास्तव में अस्तित्वगत रूप से कि तुम . वह तुम्हारी वास्तविकता होगी। और निश्चित परिभाषा है-भले कुछ ही काम . कौन हो। अब बाहर से कोई छवि तुम जमा जितनी जल्दी तुम खोज लो कि तुम कौन की हो, लेकिन काम करती है। भीतर जाने नहीं करते, दूसरों से अपनी वास्तविकता हो, उतना ही अच्छा। इस विचार को तुम का अर्थ है: इस कारगर परिभाषा को को प्रतिबिंबित करने की मांग नहीं जितनी जल्दी गिरा दो, उतना ही अच्छा छोड़ना...तो अराजकता होगी। करते-बल्कि सीधे ही, तत्क्षण उससे क्योंकि उसी क्षण से तुम सच में जन्मोगे, इससे पहले कि तुम अपने केंद्र पर साक्षात्कार करने के, अपने स्वभाव में और सच में ही तुम वास्तविक व पहुंच सको, तुम्हें बड़ी अराजक दशा से प्रवेश करके वहां उसे अनुभव करने के प्रामाणिक होओगे। तुम एक स्वतंत्र व्यक्ति गुजरना होगा। इसीलिए भय उठता है। उपाय खोजने लगते हो। हो जाओगे। कोई भी भीतर नहीं जाना चाहता। लोग किसी को पूछने की क्या जरूरत है? जो खयाल हम दूसरों से इकट्ठे कर लेते सिखाते चले जाते हैं : “स्वयं को जानो;" और किससे तुम पूछ रहे हो ? वे अपने हैं वे हमें एक व्यक्तित्व देते हैं, और अपने हम सुनते हैं, लेकिन फिर भी कभी नहीं विषय में उतने ही अज्ञानी हैं जितने कि भीतर से जो जानना हमें मिलता है वह हमें सुनते। हम इसकी कोई परवाह नहीं लेते। अपने विषय में तुम। वे स्वयं को ही नहीं वैयक्तिकता देता है। व्यक्तित्व झूठ है, मन में एक खयाल-सा है कि एक 227
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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