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तुम्हारा संबंध ममता का हो जाएगा - अधिक करुणा घटेगी, अधिक प्रेम घटित होगा। लेकिन स्तनों के निकट इस एकाग्रता को बहुत ही शिथिलतापूर्वक साधना चाहिए, तनाव से भरकर नहीं । उसके लिए यदि तुम तनाव से भर जाओ तो तुम्हारे और स्तनों के बीच में एक विभाजन हो जाएगा । शिथिल होकर स्तनों में विलीन हो जाओ और अनुभव करो कि तुम कहीं भी नहीं हो, केवल स्तन ही हैं।
यदि पुरुष को यही प्रयोग करना हो तो उसे काम-केंद्र के साथ करना होगा, स्तनों के साथ नहीं । इसीलिए हर कुंडलिनी योग में पहले चक्र का महत्व है। पुरुष को जननेंद्रिय की जड़ पर चित्त को एकाग्र करना पड़ेगा — उसकी सृजनात्मकता वहां है, वहां वह धनात्मक है। और इसे सदा स्मरण रखना कभी भी किसी ऋणात्मक बिंदु पर चित्त को एकाग्र मत करना क्योंकि उसके पीछे हर नकारात्मक चीज चली आएगी। धनात्मक के पीछे ही विधायक चीज चली आएगी।
जब पुरुष और स्त्री का मिलन होता है, तो ये जो दो ध्रुव हैं - पुरुष का ऊर्ध्वभाग ऋणात्मक होता है और निम्न भाग धनात्मक होता है; स्त्री में ऋणात्मक भाग नीचे होता है और ऊर्ध्वभाग धनात्मक होता है— ऋणात्मक और धनात्मक, ये दो ध्रुव मिलते हैं और एक वर्तुल निर्मित हो जाता है। वह वर्तुल आनंदपूर्ण है, लेकिन सामान्यतः वह नहीं बनता। सामान्यतः काम-कृत्य में वर्तुल नहीं बनता - इसीलिए सेक्स से तुम इतने
ध्यान की विधियां
आकर्षित भी होते हो, और विकर्षित भी उसके लिए तुम इतनी इच्छा करते हो, इतनी जरूरत तुम्हें महसूस होती है, इतनी तुम उसकी मांग करते हो, लेकिन जब वह तुम्हें दे दिया जाता है, जब वह उपलब्ध होता है, तो तुम निराश हो जाते हो - कुछ भी होता नहीं। यह तभी संभव है जब दोनों शरीर अत्यंत शिथिल हों, बिना किसी भय और बिना किसी प्रतिरोध के एक-दूसरे के प्रति खुले हों; इतना समग्र स्वीकार हो कि दोनों विद्युत आपस में मिलकर एक वर्तुल बन सकें।
फिर एक अद्भुत घटना घटती है... तंत्र ने इसका उल्लेख किया है, और तुमने शायद इस घटना के विषय में सुना भी न हो - यह सबसे अद्भुत घटना है - जब दो प्रेमी वास्तव में मिलते हैं और एक वर्तुल बनता है, तो एक त्वरित घटना घटती है।
एक क्षण के लिए प्रेमी प्रेमिका बन जाता है और प्रेमिका प्रेमी बन जाती है, और अगले क्षण, प्रेमी फिर से प्रेमी बन जाता है और प्रेमिका फिर से प्रेमिका बन जाती है। पुरुष एक क्षण के लिए स्त्री बन जाता है, और तब स्त्री एक क्षण के लिए पुरुष बन जाती है— क्योंकि वर्तुल घूम रहा है, ऊर्जा गति कर रही है और एक वर्तुल बन गई है।
तो ऐसा होगा कि कुछ मिनट के लिए पुरुष सक्रिय होगा और फिर वह शिथिल हो जाएगा और स्त्री सक्रिय हो जाएगी। इसका अर्थ हुआ कि अब पुरुष ऊर्जा स्त्री के शरीर में प्रवेश कर गई और वह सक्रिय
हो जाएगी, और पुरुष निष्क्रिय हो जाएगा। और यह चलता रहेगा। साधारणतः तुम पुरुष होते हो या स्त्री होते हो । गहन प्रेम में, गहन संभोग में, ऐसा होगा कि कुछ क्षण के लिए तुम स्त्री बन जाओगे, और स्त्री पुरुष बन जाएगी। और यह अनुभूति होगी, सघन अनुभूति होगी, और इसका बोध होगा कि निष्क्रियता परिवर्तन लाती है ।
जीवन में एक लय है; हर चीज में लय है। तुम एक श्वास लेते हो, श्वास भीतर जाती है— फिर कुछ सैकेंड के लिए वह रुक जाती है, कोई गति नहीं होती । तब फिर वह चलती है, बाहर जाती है - और फिर रुकती है, एक अंतराल आता है, कोई गति नहीं होती, उसके बाद फिर गति होती है। गति, अ-गति, गति । तुम्हारा हृदय धड़क रहा है— एक धड़कन, अंतराल दूसरी धड़कन, अंतराल । धड़कन का अर्थ है— सक्रियता; अंतराल का अर्थ है— निष्क्रियता । धड़कन का अर्थ है— पुरुष, धड़कन न होने का अर्थ है स्त्री ।
जीवन लय है। जब स्त्री और पुरुष मिलते हैं तो एक वर्तुल बन जाता है: दोनों के लिए ही बीच में अंतराल आएंगे। तुम एक स्त्री हो और अचानक एक अंतराल आएगा, तुम स्त्री नहीं रहोगी, पुरुष बन जाओगी। तुम पुरुष और फिर स्त्री और फिर पुरुष बनते रहोगे। और जब ये अंतराल महसूस हों तो तुम अनुभव कर सकते हो कि तुमने एक वर्तुल उपलब्ध कर लिया। 2
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