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________________ शि व ने कहा: जब ऐसे आलिंगन में तुम्हारी इंद्रियां पत्तों की तरह कंपने लगें तो इस कंपन में प्रवेश करो। नहीं करने देते, क्योंकि तुम्हारे शरीरों को यदि बहुत गतिशील होने दिया जाए तो काम - कृत्य तुम्हारे पूरे शरीर पर फैल जाएगा। जब वह काम-केंद्र तक ही सीमित हो तो तुम उसे नियंत्रण कर सकते हो । मन नियंत्रक बना रह सकता है। जब वह पूरे शरीर पर फैल जाता है, तब तुम उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। शायद तुम कंपने लगो, शायद तुम चीखने लगो, और एक बार शरीर नियंत्रण अपने हाथ में ले ले तो फिर तुम शरीर को नियंत्रित 217 प्रेम में ऊपर उठना “जब ऐसे आलिंगन में”... अपनी प्रेमिका या अपने प्रेमी के साथ ऐसे प्रगाढ़ मिलन में... "तुम्हारी इंद्रियां पत्तों की तरह कंपने लगें तो इस कंपन में प्रवेश करो। " हम तो भयभीत हो गए हैं: संभोग करते समय भी तुम अपने शरीरों को बहुत गति संभोग में कंपना नहीं कर सकोगे। हम गतियों का दमन कर लेते हैं। विशेषकर स्त्रियों के लिए सारे संसार भर में हमने सारी गति, सारे कंपन का निषेध किया है। वे लाश की तरह पड़ी रहती हैं। उनके साथ कुछ कर रहे हो, वे तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं कर रहीं। वे तो बस निष्क्रिय साझेदार हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? संसार भर में पुरुष स्त्री को इस तरह क्यों दबाता है ? कारण भय है- क्योंकि एक बार स्त्री का शरीर आविष्ट हो जाए तो अकेले एक पुरुष के लिए उसे संतुष्ट कर पाना बहुत कठिन है क्योंकि स्त्री एक शृंखला में अनेक बार यौन-सुख के शिखर को उपलब्ध हो सकती है। पुरुष ऐसा नहीं कर सकता। पुरुष एक बार ही यौन-सुख के शिखर को छू सकता है, स्त्री अनेक बार यह शिखर छू सकती है। स्त्रियों के ऐसे अनुभव के कई विवरण मिले हैं। कोई भी स्त्री एक शृंखला में तीन-तीन बार शिखर अनुभव को प्राप्त हो सकती है, लेकिन पुरुष को यह अनुभव
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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