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________________ में नहीं कहा जा सकता, वह मैं महाकाश्यप को देता हूं। शब्दों से कुंजी नहीं दी जा सकती। मैं कुंजी महाकाश्यप को देता हूं।" लेकिन झेन का यही उद्गम है। महाकाश्यप कुंजी को धारण करने वाला पहला व्यक्ति बना। फिर बोधिधर्म तक छब्बीस धारक भारत में हुए । बोधिधर्म कुंजी का छब्बीसवां धारक था, और उसने भारत भी में बहुत खोजा, लेकिन वह महाकाश्यप की हैसियत का कोई व्यक्ति न खोज सका, कोई व्यक्ति जो मौन को समझ सकता। ऐसे व्यक्ति की खोज में ही उसे भारत को छोड़ना पड़ा जिसे कुंजी दी जा सके; वरना तो कुंजी खो जाती। बोधिधर्म के साथ ही बुद्ध-धर्म ने चीन में प्रवेश किया जब वे ऐसे व्यक्ति की तलाश में वहां पहुंचे जिसे कुंजी दी जा सके, जो मौन को समझ सके, जो मन से अभिभूत हुए बिना हृदय से हृदय की बात कर सके, जिसका सिर न हो । शब्दों के पार का यह संप्रेषण हृदय और हृदय के बीच ही संभव है। तो नौ वर्षों तक बोधिधर्म ने चीन में तलाश की, और तब भी वह एक ही व्यक्ति को खोज सका। एक चीनी व्यक्ति सत्ताईसवां गुरु बना । और अभी तक यह क्रम चल रहा है। कुंजी अभी भी है; कोई न कोई अभी भी उसे धारण किए है। नदी अभी सूखी नहीं है। हम एक बुद्ध से भी चाहते हैं कि वे बोलें क्योंकि यही केवल हम समझते हैं। यह मूढ़ता की बात है। तुम्हें बुद्ध के साथ ध्यान की विधियां मौन होना सीखना चाहिए, क्योंकि तभी वे तुममें प्रवेश कर सकते हैं। शब्दों से वे तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे सकते हैं, लेकिन कभी प्रवेश नहीं कर सकते; मौन से वे तुममें प्रवेश कर सकते हैं, और जब तक वे तुममें प्रवेश न कर जाएं, तुम्हें कुछ भी नहीं घटेगा । उनका प्रवेश तुम्हारे अस्तित्व में एक नया तत्व ले आएगा; हृदय में उनका प्रवेश तुम्हें एक नई धड़कन और एक नई गति दे देगा, जीवन का एक नया प्रसार दे देगा, लेकिन उनका प्रवेश ही । महाकाश्यप लोगों की मूढ़ता पर हंसा । वे बेचैन हो रहे थे और सोच रहे थे : बुद्ध कब खड़े होंगे और इस मौन को समाप्त करेंगे ताकि हम घर जा सकें? महाकाश्यप हंसा । हंसी महाकाश्यप के साथ शुरू हुई और झेन परंपरा में चलती चली आ रही है। कोई और परंपरा नहीं है जो हंस सके। झेन मठों में वे लोग हंसते रहे हैं, और हंसते ही रहे हैं। महाकाश्यप हंसा, और यह हंसी अपने में कई आयाम लिए हुए थी । एक तो वह हंसा पूरी परिस्थिति की मूढ़ता पर, कि एक बुद्ध मौन हैं और कोई उसे समझ नहीं रहा, हर कोई अपेक्षा कर रहा है कि वे बोलें। अपने पूरे जीवन बुद्ध कहते रहे थे कि सत्य को कहा नहीं जा सकता, और फिर भी सब उनसे बोलने की अपेक्षा कर रहे थे। दूसरा आयाम - वह बुद्ध पर भी हंसा, जो पूरी नाटकीय परिस्थिति उन्होंने पैदा कर दी थी उस पर हंसा - फूल हाथ में पकड़कर उसे देखते हुए वे बैठ गए थे और सभी में इतनी बेचैनी, इतनी व्यग्रता पैदा कर रहे थे। बुद्ध के इस नाटकीय अंदाज पर वह हंसा, वह हंसा और हंसता ही गया। तीसरा आयाम - वह स्वयं पर हंसा । अब तक वह समझ क्यों नहीं सका ? सारी बात सीधी और सरल थी। और जिस दिन तुम समझते हो, तुम हंसोगे, क्योंकि समझने को कुछ है ही नहीं। कोई समस्या ही नहीं है सुलझाने को । सब कुछ सदा से ही सीधा-साफ रहा है। तुम उसे चूक कैसे सके ? बुद्ध मौन बैठे हैं, पक्षी वृक्षों में गीत गा रहे हैं, वृक्षों से बयार गुजरती है, सभी बेचैन हैं, और महाकाश्यप समझ गया। क्या समझा वह ? वह समझ गया कि समझने को कुछ भी नहीं है, कहने को कुछ भी नहीं है, समझाने को कुछ भी नहीं है। सारी बात सीधी और स्पष्ट है। कुछ भी इसमें छिपा नहीं है। खोजने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि जो है, वह अभी और यहां तुम्हारे भीतर है। वह स्वयं पर भी हंसा, इस मौन को समझने के लिए अपने जन्मों-जन्मों के अर्थहीन प्रयास पर हंसा, इतने सोच-विचार पर हंसा । बुद्ध ने उसे बुलाया, फूल दिया और बोले, "आज मैं तुम्हें कुंजी सौंपता हूं।" कुंजी क्या है? मौन और हंसी है कुंजी - भीतर मौन, बाहर हंसी । और जब हंसी मौन से उठती है तो इस संसार की नहीं होती, दिव्य होती है। हंसी जब मौन से उठती है तो तुम किसी 208
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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