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मात्र बैठना
द्ध को एक दिन कोई विशेष व प्रवचन देना था, और दूर-दूर से उहजारों शिष्य इकट्ठे हुए थे। जब बुद्ध आए तो वे एक फूल पकड़े हुए थे। समय गुजरा, लेकिन बुद्ध कुछ भी नहीं बोले। वे बस फूल की ओर देखते रहे। भीड़ बेचैन होने लगी, लेकिन महाकाश्यप जो अपने को रोक न सका, हंसने लगा।
झेन की हंसी
बुद्ध ने उसे बुलाया, फूल उसे दिया, यह गाथा स्रोत है जिससे परी उन्हें भेंट किया होगा। और भीड़ से बोले: "मेरे पास सच्ची परंपरा-पृथ्वी की सबसे सुंदर परंपरा, बुद्ध आए, वृक्ष के नीचे बैठ गए। लोग देशना की आंख है। जो भी शब्दों से दिया झेन की परंपरा शुरू हुई।
प्रतीक्षा करते रहे-करते रहे और वे बोलें जा सकता है मैं तुम्हें दे चुका हूं; लेकिन इस गाथा को समझने का प्रयास करो। ही न। वे तो उनकी ओर देखे भी नहीं। वे इस फूल के साथ, मैं महाकाश्यप को इस बुद्ध एक सुबह आए और सदा की तरह तो फूल को ही देखते रहे। मिनट बीते, देशना की कुंजी देता हूं।"
श्रोता लोग जमा थे। कई लोग उन्हें सनने फिर घंटे, और लोग बहुत बेचैन हो गए। __ यह गाथा बड़ी महत्वपूर्ण गाथाओं में से की प्रतीक्षा कर रहे थे।
कहते हैं कि महाकाश्यप स्वयं को रोक है, क्योंकि इसी से झेन की परंपरा शुरू लेकिन एक बात असामान्य थी-वे नहीं सका। वह जोर से हंसा। बुद्ध ने उसे हुई। बुद्ध स्रोत थे, और महाकाश्यप अपने हाथ में एक फूल पकड़े हुए थे। बुलाया, फूल दिया और वहां जमा लोगों पहला, मौलिक झेन सद्गुरु था। बुद्ध पहले कभी वे अपने हाथ में कुछ लेकर से बोले, "शब्दों से जो भी कहा जा सकता स्रोत थे, महाकाश्यप पहला गुरु था, और नहीं आए थे। लोगों ने सोचा, किसी ने है, मैंने तुम्हें कह दिया है, और जो शब्दों
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