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________________ ध्यान की विधियां क्योंकि वृक्ष गति नहीं कर रहे, और दृश्य चौथी बात है : अपने शरीर को जितना निर्देश : थिर बना रहता है। तुम आकाश को देख हो सके स्थिर हो जाने दो। पहले कोई सकते हो, या किसी कोने में बैठकर दीवार अच्छी शारीरिक मुद्रा खोज लो-तुम किसी खाली दीवार की ओर मुंह की ओर देख सकते हो। किसी तकिए पर, किसी गद्दे पर बैठ सकते करके बैठ जाएं, और लगभग एक हाथ दूसरी बात है, किसी वस्तु विशेष की हो या जैसा भी तुम्हें आरामदेह लगे, की दूरी रखें। आंखें आधी खुली हों ओर मत देखो-बस शून्य में देखो, लेकिन एक बार तुम बैठ जाओ तो फिर जिससे नजर धीमे से दीवार पर ठहरी क्योंकि आंखें हैं तो कहीं तो देखना ही स्थिर रहो, क्योंकि यदि शरीर न हिले तो रहे। अपनी पीठ सीधी रखें और एक पड़ेगा, लेकिन तुम विशेष रूप से किसी मन स्वतः ही शांत हो जाता है। गतिमान हाथ को दूसरे हाथ पर रख कर दोनों चीज की ओर नहीं देख रहे हो। किसी शरीर में मन भी गति करता रहता है, अंगूठों को आपस में इस तरह से जोड़ लें चीज पर चित्त को केंद्रित या एकाग्र मत क्योंकि शरीर और मन झे चीजें नहीं हैं। वे कि एक अंडाकृति बन जाए। तीस मिनट करो-बस मद्धिम-सी आकृति बने। एक ही हैं...यह एक ही ऊर्जा है। के लिए जितना हो सके स्थिर रहें। इससे बड़ी शिथिलता आ जाती है। शुरू में यह थोड़ा कठिन लगेगा लेकिन बैठे समय एक चुनाव रहित और तीसरी बात है। अपनी श्वास को कुछ दिन बाद तुम्हें इसमें बहुत मजा आने जागरूकता को घटने दें और होश को शिथिल कर लो। और करो मत,उसे होने लगेगा। तुम देखोगे, धीरे-धीरे, मन की विशेष रूप से कहीं न ले जाएं, बल्कि दो। उसे स्वाभाविक होने दो और इससे । पर्त-दर-पर्त छूटती जा रही है। एक क्षण क्षण-प्रतिक्षण जितना हो सके खुले और और अधिक शिथिलता आएगी। आता है जब तुम मन के बिना होते हो। सचेत रहें। 206
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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