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________________ और की कीमत पर नहीं हंस रहे । तुम तो इस पूरे जागतिक मजाक पर हंस रहे हो । और यह सच ही एक मजाक है। इसीलिए मैं तुम्हें चुटकुले सुनाता रहता हूं, क्योंकि चुटकुलों में शास्त्रों से अधिक सार है। यह एक मजाक है, क्योंकि तुम्हारे भीतर सब कुछ है, और तुम सब ओर खोज रहे हो। और क्या मजाक होगा ? तुम एक राजा हो, और सड़क पर खड़े भिखारी जैसा अभिनय कर रहे हो। न केवल अभिनय कर रहे हो, न केवल दूसरों को धोखा दे रहे हो, बल्कि खुद को भी धोखा दे रहे हो कि तुम भिखारी हो । तुम्हारे पास समस्त ज्ञान का स्रोत है और तुम प्रश्न पूछ रहे हो ! तुम्हारे पास बोधपूर्ण सत्ता है जो जानती है और तुम सोचते हो कि तुम अज्ञानी हो; तुम्हारे भीतर अमृतधर्मा है और तुम मृत्यु व व्याधि से भयभीत हो। यह मजाक ही है, और यदि वह हंसा तो उसने अच्छा किया। महाकाश्यप मौन रहा था, और अंतर्धारा चुपचाप बहती रही थी। फिर कुंजी दूसरों को दी जाती रही, और कुंजी अभी भी जीवित है, अभी भी द्वार खोलती है। ये दो अंग हैं। आंतरिक मौन – इतना गहरा मौन कि तुम्हारे प्राणों में कोई तरंग भी न बचे; तुम हो, लेकिन कोई लहर नहीं है; तुम बस एक सरोवर हो जिसमें कोई 209 मात्र बैठना लहर नहीं, एक भी लहर नहीं उठती; पूरे प्राण शांत हैं, निश्चल हैं; भीतर, केंद्र पर मौन है—और परिधि पर उत्सव व हंसी । और मौन ही हंस सकता है क्योंकि मौन ही जागतिक मजाक को समझ सकता है। मैं तुम्हें कहता हूं, जिस मौन में उदासी हो वह सच्चा नहीं हो सकता। उसमें कुछ गलती हो गई। तुम मार्ग को चूक गए; तुम पटरी से उतर गए। केवल उत्सव प्रमाण दे सकता है कि वास्तविक मौन घटा यह है। वास्तविक मौन और झूठे मौन में क्या भेद है ? झूठा मौन सदा ही आरोपित होता है । वह प्रयास से उपलब्ध होता है। वह सहज नहीं होता, वह तुम्हें घटा नहीं । तुमने उसे घटाया है। तुम मौन बैठे हो और भीतर तूफान मचा है । उसे तुम दबाते हो और फिर हंस नहीं सकते। तुम उदास हो जाओगे क्योंकि हंसी खतरनाक होगी - यदि तुम हंसे अपना मौन खो दोगे, क्योंकि हंसी में तुम दमन नहीं कर सकते। हंसना दमन के विपरीत है। यदि तुम दमन करना चाहो तो तुम्हें हंसना नहीं चाहिए; यदि तुम हंसे तो सब बाहर आ जाएगा। हंसी में, जो वास्तविक है वह बाहर आ जाएगा, और जो अवास्तविक है वह खो जाएगा। यह कुंजी है— इसका अंतर्भाग मौन है, और कुंजी का बाह्य भाग है उत्सव, हंसी । उत्सवपूर्ण और मौन हो जाओ। अपने चारों ओर अधिकाधिक संभावनाएं निर्मित करो - अंतस को मौन होने के लिए बाध्य मत करो, बस अपने चारों ओर अधिकाधिक संभावनाएं निर्मित करते चले जाओ ताकि अंतर्पुष्प उसमें खिल सके। ध्यान तुम्हें मौन तक नहीं ले जाता । ध्यान केवल परिस्थिति पैदा करता है जिसमें मौन घटता है। और यह कसौटी होनी चाहिए— कि जब भी मौन घटता है, तुम्हारे जीवन में हंसी आ जाएगी। चारों ओर एक जीवंत उत्सव घटने लगेगा। जब मौन बहुत ज्यादा हो जाता है तो हंसी बन जाता है । वह इतना भर जाता है कि सब दिशाओं में बहने लगता है। वह हंसा । जरूर वह एक पागल हंसी रही होगी। और उस हंसी में कोई महाकाश्यप नहीं रहा । मौन हंस रहा था । मौन एक खिलावट पर पहुंच गया था। तुम्हारा बुद्धत्व तभी पूर्ण होता है जब मौन एक उत्सव बन जाए। इसीलिए मेरा जोर है कि जब तुम ध्यान करो, उसके बाद तुम्हें उत्सव मनाना चाहिए। मौन होने के बाद तुम्हें उसका आनंद लेना चाहिए, तुम्हें अहोभाव प्रकट करना चाहिए। समग्र के प्रति एक गहन अहोभाव प्रकट करना चाहिए कि तुम्हें होने का अवसर मिला, कि तुम ध्यान कर सकते हो, कि तुम मौन हो सकते हो, कि तुम हंस सकते हो। 5
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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