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________________ ध्यान के विषय में ध्यान की खिलावट ध्यान कोई भारतीय पद्धति मात्र नहीं है; यह एक विधि मात्र नहीं है। तुम इसे एक वास्तविकता है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति सीख नहीं सकते। यह तो एक विकास है-तम्हारे समग्र जीवन का विकास, के भीतर सदा से मौजूद ही है लेकिन हम तुम्हारे समग्र जीवन से उठा प्रादुर्भाव। ध्यान कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे तम्हारे कभी भीतर नहीं देखते हैं। साथ जोड़ा जा सके-जैसे अभी तुम हो। इसे तुम्हारे साथ जोड़ा नहीं जा सकता: तुम्हारे अंतर्जगत का अपना ही स्वाद है, एक अमूल रूपांतरण से, एक अंतस क्रांति से ही यह तुममें घट सकता है। यह अपनी ही सुवास है, अपना ही प्रकाश है। एक खिलावट है, एक विकास है। विकास हमेशा समग्र से आता है; यह कोई और वहां परम मौन है-परिपूर्ण, असीम जोड़ या संग्रह नहीं है। प्रेम की तरह ही यह बाहर से तुममें जोड़ा नहीं जा सकता। और शाश्वत। वहां कभी कोई शोरगुल न रहा है और न कभी होगा। कोई शब्द वहां यह तुम्हारे अंतस से, तुम्हारी समग्रता से उपजता है। तुम्हें ध्यान की ओर विकसित नहीं पहुंच सकता है, लेकिन तुम वहां होना है। 8 पहुंच सकते हो। वह शोरगुल का अभाव मात्र है। लेकिन तुम्हारी स्व-सत्ता का केंद्र ही झंझावात गहन मौन मौन एक सर्वथा भिन्न आयाम है। यह का शांत केंद्र है। उसके चारों ओर जो कुछ पूर्णतः विधायक है। यह अस्तित्वमय घटता है वह उस केंद्र को प्रभावित नहीं अकसर समझा जाता रहा है कि मौन है-कोई रिक्तता नहीं। यह एक संगीत करता। वहां शाश्वत मौन है: दिन आते एक नकारात्मक अवस्था का अतिरेक प्रवाह है, जिसे तुमने कभी हैं, चले जाते हैं; वर्ष आते हैं, चले जाते है-एक रिक्तता, आवाजों और शोरगुल सुना नहीं; एक सुवास जो तुम्हारे लिए हैं; सदियां आती हैं और बीत जाती हैं। का अभाव। यह गलतफहमी फैली हुई है अनजानी है; एक ऐसा आलोक जिसे जीवन आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन क्योंकि बहुत ही कम लोगों ने आजतक केवल अंतस चक्षुओं द्वारा ही देखा जा तुम्हारी स्व-सत्ता का शाश्वत मौन सदा मौन का अनुभव किया है। मौन के नाम सकता है। वैसा ही बना रहता है-वही स्वरहीन पर कुल जमा जो उन्होंने अनुभव किया है यह कोई काल्पनिक बात नहीं है, यह संगीत, वही भगवत्ता की सुवास, वही
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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