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________________ इनका संगीत अनुभव कर सकते हो, वे तीनों एक सुरताल बन जाते हैं - तब चौथा चरण " तुरीय” घटता है— उसे तुम कर नहीं सकते। चौथा अपने से होता है। यह समग्र अस्तित्व से आया उपहार है; जो प्रथम तीन चरणों को साध चुके हैं, उनके लिए यह एक पुरस्कार है 5 चौथा चरण होश का चरम शिखर है, जो व्यक्ति को जाग्रत बना देता है। ध्यान के विषय में व्यक्ति होश के प्रति जागरूक हो जाता है—यह है चौथा । व्यक्ति बुद्ध हो जाता है, जाग जाता है। और इस जागरण में ही अनुभूति होती है कि परम आनंद क्या है । शरीर जानता है देह - सुख; मन जानता है प्रसन्नता; हृदय जानता है हर्षोल्लास और चौथा, तुरीय जानता है आनंद । आनंद लक्ष्य है संन्यास का, सत्य के खोजी का — और जागरूकता है उसके लिए मार्ग | 6 हो, कि तुम होशपूर्ण होना ' `हत्व की बात है कि तुम जागरूक नहीं हो, कि तुम साक्षी हो, द्रष्टा हो, सचेत हो । और जैसे-जैसे देखने वाला, द्रष्टा ज्यादा सघन, ज्यादा थिर, ज्यादा अकंप होने लगता है— एक रूपांतरण घटित होता है: दृश्य विसर्जित होने लगते हैं। पहली बार द्रष्टा स्वयं दृश्य बन जाता है, देखने वाला स्वयं दृष्ट हो जाता है। तुम 'घर' वापस आ गए। 7 म
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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