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________________ ध्यान के विषय में लेकिन क्या तुम उस द्रष्टा को देख सकते सारी बात यह है कि तुम सोये-सोये मत उसे। सब कुछ प्रभावित होता है। और हो जो इन दोनों को देख रहा रहो। फिर जो भी हो, ध्यान होगा। इन सब का जोड़ ही तुम्हारा जीवन बनने है?—कौआ–सुनने वाला और फिर वाला है। इसलिए इस भीतर के पागल एक 'कोई और' जो इन दोनों को देख रहा टोश के लिए पहला चरण है अपने व्यक्ति को बदलना होगा। और होश का है। यह एक सीधी-सरल घटना है। शरीर के प्रति पूर्ण होश रखना। चमत्कार यह है कि तुम्हें और कुछ भी नहीं तुम एक वृक्ष को देखते हो-तुम हो धीरे-धीरे व्यक्ति प्रत्येक भाव-भंगिमाओं करना है सिवाय होशपूर्ण होने के। इसे और वृक्ष है, लेकिन क्या तुम एक और के प्रति, हर गति के प्रति होशपूर्ण हो जाता देखने की घटना मात्र ही इसका रूपांतरण तत्व को नहीं पाते? कि तुम वृक्ष को है। और जैसे ही तुम होशपूर्ण होने लगते है। धीरे-धीरे यह पागलपन विसर्जित हो देख रहे हो और फिर एक द्रष्टा है जो देख हो, एक चमत्कार घटित होने लगता है: जाता है। धीरे-धीरे विचार एक लयबद्धता रहा है कि तुम वृक्ष को देख रहे हो। 4 अनेक बातें जो तुम पहले करते थे, सहज ग्रहण करने लगते हैं; उनकी अराजकता ही गिर जाती हैं। तुम्हारा शरीर ज्यादा हट जाती है और उनकी एक सुसंगतता साक्षी ध्यान है। तुम क्या देखते हो, विश्रामपूर्ण, ज्यादा लयबद्ध हो जाता है। प्रकट होने लगती है। और फिर एक ज्यादा या यह बात गौण है। तुम वृक्षों को शरीर तक में एक गहन शांति फैल जाती गहन शांति उतरती है। फिर जब तुम्हारा देख सकते हो, तुम नदी को देख सकते हो, है, एक सूक्ष्म संगीत फैल जाता है शरीर शरीर और मन शांतिपूर्ण हैं तब तुम देखोगे बादलों को देख सकते हो, तुम बच्चों को में। कि वे परस्पर भी लयबद्ध हैं, उनके बीच आसपास खेलता हुआ देख सकते हो। फिर अपने विचारों के प्रति होशपूर्ण एक सेतु है। अब वे विभिन्न दिशाओं साक्षी होना ध्यान है। तुम क्या देखते हो होना शुरू करो। जैसे शरीर के प्रति होश में नहीं दौड़ते; अब वे दो घोड़ों पर सवार यह बात नहीं है; विषय-वस्तु की बात नहीं को साधा, वैसे ही अब विचारों के प्रति नहीं होते। पहली बार भीतर एक सुख-चैन करो। विचार शरीर से ज्यादा सूक्ष्म हैं, और आया है और यह सुख-चैन बहुत सहायक देखने की गुणवत्ता, होशपूर्ण और सजग फलतः ज्यादा कठिन भी हैं। और जब तुम होता है-तीसरे तल पर ध्यान साधने में होने की गुणवत्ता—यह है ध्यान। विचारों के प्रति जागोगे, तब तुम और वह है-अपनी अनुभूतियों और एक बात ध्यान रखें ध्यान का अर्थ है आश्चर्यचकित होओगे कि भीतर भावदशाओं के प्रति होशपूर्ण होना। होश। तुम जो कुछ भी होशपूर्वक करते हो क्या-क्या चलता है। यदि तुम किसी यह सूक्ष्मतम तल है और सबसे वह ध्यान है। कर्म क्या है, यह प्रश्न नहीं, भी समय भीतर क्या चलता है उसे लिख कठिन भी। लेकिन यदि तुम विचारों किंतु गुणवत्ता जो तुम कर्म में ले आते हो, डालो, तो तुम चकित होओगे। तुम भरोसा के प्रति होशपूर्ण हुए हो, तब यह केवल उसकी बात है। चलना ध्यान हो सकता है, ही न कर पाओगे कि भीतर यह सब एक कदम आगे है। कुछ ज्यादा गहन होश यदि तुम होशपूर्वक चलो। बैठना ध्यान हो क्या चलता है। फिर दस मिनट के बाद और तुम अपने भावों और अनुभूतियों सकता है, यदि तुम होशपूर्वक बैठ सको। इसे पढ़ो-तुम पाओगे कि भीतर एक के प्रति सजग हो जाओगे। एक बार पक्षियों की चहचहाहट को सुनना ध्यान हो पागल मन बैठा हुआ है! चूंकि हम तुम इन तीन आयामों में होशपूर्ण हो सकता है, यदि तुम होशपूर्वक सुन सको। होशपूर्ण नहीं होते, इसलिए यह सब जाते हो, फिर ये तीनों जुड़कर एक ही या केवल अपने भीतर मन की आवाजों को पागलपन अंतर्धारा की तरह चलता रहता घटना बन जाते हैं। जब ये तीन एक साथ सुनना ध्यान बन सकता है, यदि तुम जाग्रत है। यह प्रभावित करता है-जो कुछ तुम हो जाते हैं—एक साथ क्रियाशील और साक्षी रह सको। करते हो उसे या जो कुछ तुम नहीं करते और निनादित हो उठते हैं, तब तुम
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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