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- त्सू ने कहा : व्यक्ति नासाग्र की ओर देखे ।
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ध्यान की विधियां
क्यों ? — क्योंकि इससे मदद मिलती है, यह प्रयोग तुम्हें तृतीय नेत्र की रेखा पर ले आता है। जब तुम्हारी दोनों आंखें नासाग्र पर केंद्रित होती हैं तो उससे कई बातें होती हैं। मूल बात यह है कि तुम्हारा तृतीय नेत्र नासाग्र की रेखा पर है – कुछ इंच ऊपर, लेकिन उसी रेखा में। और एक
नासाग्र को देखना
बार तुम तृतीय नेत्र की रेखा में आ जाओ तो तृतीय नेत्र का आकर्षण, उसका खिंचाव, उसका चुम्बकत्व इतना शक्तिशाली है कि तुम उसकी रेखा में पड़ जाओ तो अपने बावजूद भी तुम उसकी ओर खिंच जाओगे। तुम्हें बस ठीक उसकी रेखा में आ जाना है, ताकि तृतीय नेत्र का आकर्षण, गुरुत्वाकर्षण सक्रिय हो जाए। एक बार तुम ठीक उसकी रेखा में आ जाओ तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं है।
अचानक तुम पाओगे कि गेस्टाल्ट बदल गया, क्योंकि दो आंखें संसार और विचार का द्वैत पैदा करती हैं, और इन दोनों आंखों के बीच की एक आंख अंतराल निर्मित करती है। यह गेस्टाल्ट को बदलने की एक सरल विधि है ।
मन इसे विकृत कर सकता है— मन कह सकता है, “ठीक, अब नासाग्र को देखो। नासाग्र का विचार करो, उस पर चित्त को एकाग्र करो । ” यदि तुम नासाग्र
पर बहुत एकाग्रता साधो तो बात को चूक जाओगे, क्योंकि होना तो तुम्हें नासाग्र पर है, लेकिन बहुत शिथिल ताकि तृतीय नेत्र तुम्हें खींच सके। यदि तुम नासाग्र पर बहुत ही एकाग्रचित्त, मूलबद्ध, केंद्रित और स्थिर हो जाओ तो तुम्हारा तृतीय नेत्र तुम्हें भीतर नहीं खींच सकेगा क्योंकि वह पहले कभी भी सक्रिय नहीं हुआ। प्रारंभ में उसका खिंचाव बहुत ज्यादा नहीं हो सकता। धीरे-धीरे वह बढ़ता जाता है।
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