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ध्यान की विधियां
डाले हलके से छूते हो तो ऊर्जा भीतर की विश्रांति अनुभव करो और फिर दोनों में कोई बोझ नहीं है। वे बस स्पर्श कर रहे
ओर जाने लगती है। यदि तुम दबाव डालो हथेलियों को अपनी आंखों पर रख लो। हैं। यह बोध बनाए रहो कि वे दबाव नहीं तो वह हाथ के साथ, हथेली के साथ लेकिन दबाव मत डालो-यह बड़ी डाल रहे हैं, बस स्पर्श कर रहे हैं। यह एक लड़ने लगती है और बाहर निकल जाती महत्वपूर्ण बात है। बस पंख की भांति गहन बोध बन जाएगा, बिलकुल ऐसे जैसे है। हलका-सा स्पर्श , और ऊर्जा भीतर छुओ।
श्वास-प्रश्वास। जैसे बुद्ध कहते हैं कि पूरे जाने लगती है। द्वार बंद हो जाता है, बस जब तुम स्पर्श करो और दबाव न जागकर श्वास लो, ऐसा ही स्पर्श के साथ द्वार बंद होता है और ऊर्जा वापस लौट डालो, तो तुम्हारे विचार तत्क्षण रुक भी होगा। तुम्हें सतत स्मरण रखना होगा पड़ती है। जिस क्षण ऊर्जा कापस लौटेगी जाएंगे। विश्रांत मन में विचार नहीं चल कि तुम दबाव नहीं डाल रहे। तुम्हारा हाथ तुम अपने पूरे चेहरे और सिर पर एक सकते; वे जम जाते हैं। विचारों को उन्माद बस एक पंख, एक भारहीन वस्तु बन हलकापन व्याप्त होता अनुभव करोगे। और बुखार की जरूरत होती है, उनके जाना चाहिए, जो बस छुए। तुम्हारा चित्त यह वापस लौटती ऊर्जा तुम्हें हलका कर चलने के लिए तनाव की जरूरत होती है। समग्रतः सचेत होकर वहां आंखों के पास देती है।
वे तनाव के सहारे ही जीते हैं। जब आंखें लगा रहेगा, और ऊर्जा सतत बहती रहेगी। और इन दोनों आंखों के बीच में तीसरी शांत व शिथिल हों और ऊर्जा पीछे लौटने शुरू में तो वह बूंद-बूंद करके ही आंख, प्रज्ञा-चक्षु है। ठीक दोनों आंखों के लगे तो विचार रुक जाएंगे। तुम्हें एक टपकेगी। कुछ ही महीनों में तुम्हें लगेगा मध्य में तीसरी आंख है। आंखों से वापस मस्ती का अनुभव होगा, जो रोज-रोज वह सरिता-सी हो गई है, और एक साल लौटती ऊर्जा तीसरी आंख से टकराती है। गहराता जाएगा।
बीतते-बीतते तुम्हें लगेगा कि वह एक यही कारण है व्यक्ति हलका और जमीन तो इस प्रयोग को दिन में कई बार करो। बाढ़ की तरह हो गई है। और जब ऐसा से उठता हुआ अनुभव करता है, जैसे कि एक क्षण के लिए छूना भी अच्छा रहेगा। होता है-“आंख की पुतलियों को पंख कोई गुरुत्वाकर्षण न रहा हो। और तीसरी जब भी तुम्हारी आंखें थकी हुई, की भांति छूने से उनके बीच का आंख से ऊर्जा हृदय पर बरस जाती है। ऊर्जा-विहीन और चुकी हुई महसूस हलकापन...।"-जब तुम स्पर्श करोगे यह एक शारीरिक प्रक्रिया है: बूंद-बूंद करें-पढ़कर, फिल्म देख कर, या तो तुम्हें हलकापन महसूस होगा। वह तुम करके ऊर्जा टपकती है और तुम अत्यंत टेलीविजन देख कर-जब भी तुम्हें ऐसा अभी भी महसूस कर सकते हो। जैसे ही हलकापन अपने हृदय में प्रवेश करता लगे, अपनी आंखें बंद कर लो और स्पर्श तुम स्पर्श करते हो, तत्क्षण एक हलकापन अनुभव करोगे। हृदयगति कम हो जाएगी, करो। तत्क्षण प्रभाव होगा। लेकिन यदि आ जाता है। और वह “उनके बीच का श्वास धीमी हो जाएगी। तुम्हारा पूरा शरीर तुम इसे एक ध्यान बनाना चाहो, तो इसे हलकापन हृदय में खुलता है।"... वह विश्रांत अनुभव करेगा।
कम से कम चालीस मिनट के लिए करो। हलकापन हृदय में प्रवेश कर जाता है, यदि तुम गहन ध्यान में प्रवेश नहीं भी और पूरी बात यही है कि दबाव नहीं खुल जाता है। हृदय में केवल हलकापन कर रहे, तो भी यह प्रयोग तुम्हें शारीरिक डालना। एक क्षण के लिए तो पंख जैसा ही प्रवेश कर सकता है; कोई भी बोझिल रूप से उपयोगी होगा। दिन में किसी भी स्पर्श सरल है; चालीस मिनट के लिए चीज प्रवेश नहीं कर सकती। हृदय के समय, आराम से कुर्सी पर बैठ कठिन है। कई बार तुम भूल जाओगे और साथ बहुत हलकी-फुलकी घटनाएं ही घट जाओ-या तुम्हारे पास यदि कुर्सी न हो, दबाव डालने लगोगे।
सकती हैं। जब तुम रेलगाड़ी में सफर कर रहे हो तो दबाव मत डालो। चालीस मिनट के दोनों आंखों के बीच का यह हलकापन अपनी आंखें बंद कर लो, पूरे शरीर में एक लिए यह बोध बनाए रहो कि तुम्हारे हाथों हृदय में टपकने लगेगा, और हृदय उसको
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