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तृतीय नेत्र से देखना
व ने कहाः आंख की - पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन हृदय में खुलता है, और वहां ब्रह्मांड व्याप जाता है।
अपनी दोनों हथेलियों का उपयोग करो, उन्हें अपनी बंद आंखों पर रखो, और हथेलियों को पुतलियों से छू जाने दो-लेकिन पंख के जैसे, बिना कोई दबाव डाले। यदि दबाव डाला तो तुम चूक गए, तुम पूरी विधि से ही चूक गए। दबाव
पंख की भांति छूना
मत डालो; बस पंख की भांति छुओ। तुम्हें वहां तलवार कुछ भी नहीं कर सकती। डालो। आंखों की ऊर्जा को थोड़े-से दबाव थोड़ा समायोजन करना होगा क्योंकि शुरू यदि तुमने दबाव डाला, तो उसका गुणधर्म का भी पता चल जाता है। में तो तुम दबाव डालोगे। दबाव को कम बदल गया-तुम आक्रामक हो गए। और वह ऊर्जा बहुत सूक्ष्म है, बहुत कोमल से कम करते जाओ जब तक कि दबाव जो ऊर्जा आंखों से बह रही है वह बहुत है। दबाव मत डालो-बस पंख की बिलकुल समाप्त न हो जाए-बस तुम्हारी सूक्ष्म है : थोड़ा-सा दबाव, और वह संघर्ष भांति, तुम्हारी हथेलियां ही छुएं, जैसे कि हथेलियां पुतलियों को छुएं। बस एक करने लगती है जिससे एक प्रतिरोध पैदा स्पर्श हो ही न रहा हो: स्पर्श ऐसे करो जैसे स्पर्श, बिना दबाव का एक मिलन क्योंकि हो जाता है। यदि तुम दबाव डालोगे तो जो कि वह स्पर्श न हो, दबाव जरा भी न हो; यदि दबाव रहा तो यह विधि कार्य नहीं ऊर्जा आंखों से बह रही है वह एक बस एक स्पर्श, एक हलका-सा एहसास करेगी। तो बस एक पंख की भांति। प्रतिरोध, एक लड़ाई शुरू कर देगी। एक कि हथेली पुतली को छू रही है, बस।
क्यों? क्योंकि जहां सुई का काम हो संघर्ष छिड़ जाएगा। इसलिए दबाव मत इससे क्या होगा? जब तुम बिना दबाव
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