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ध्यान की विधियां
व ने कहाः होश को दोनों
भौंहों के मध्य में लाओ और मन को विचार के समक्ष आने दो। देह को पैर से सिर तक प्राण तत्व से भर जाने दो, और वहां वह प्रकाश की भांति बरस जाए।
यह विधि पाइथागोरस को दी गई थी। पाइथागोरस यह विधि लेकर ग्रीस गया।
और वास्तव में वह पश्चिम में सारे रहस्यवाद का उद्गम बन गया, स्रोत बन गया। वह पश्चिम में पूरे रहस्यवाद का जनक है।
साक्षी को खोजना
यह विधि बहुत गहन पद्धतियों में से है। दोनों आंखों के बीच एक तीसरी आंख का बीच में केंद्रित करो। आंखें बंद करके ठीक इसे समझने का प्रयास करोः "होश को अस्तित्व है, लेकिन साधारणतः वह मध्य में होश को केंद्रित करो, जैसे कि तुम दोनों भौंहों के मध्य में लाओ।"... निष्क्रिय रहती है। उसे खोलने के लिए अपनी दोनों आंखों से देख रहे हो। उस पर आधुनिक मनोविज्ञान और वैज्ञानिक शोध तुम्हें कुछ करना पड़ेगा। वह आंख अंधी पूरा ध्यान दो।। कहती है कि दोनों भौहों के मध्य में एक नहीं है। वह बस बंद है। यह विधि तीसरी यह विधि सचेत होने के सरलतम ग्रंथि है जो शरीर का सबसे रहस्यमय अंग आंख को खोलने के लिए ही है। उपायों में से है। तुम शरीर के किसी अन्य है। यह ग्रंथि, जिसे पाइनियल ग्रंथि कहते होश को दोनों भौंहों के मध्य में अंग के प्रति इतनी सरलता से सचेत नहीं हैं, यही तिब्बतियों का तृतीय नेत्र लाओ।"...अपनी आंखें बंद कर लो, हो सकते। यह ग्रंथि होश को पूरी तरह है-शिवनेत्र : शिव का, तंत्र का नेत्र। और अपनी आंखों को दोनों भौंहों के ठीक आत्मसात कर लेती है। यदि तुम उस
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