SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ य एक अन्य शक्तिशाली, रेचक विधि है जो ऊर्जा का एक वर्तुल निर्मित कर देती है जिससे स्वाभाविक रूप से ही केंद्रस्थता घट जाती है। इसमें पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण हैं। पहला चरण: पंद्रह मिनट आखें खुली रख कर एक ही स्थान पर खड़े-खड़े दौड़ें। धीरे-धीरे शुरू करके तीव्र से तीव्र होते जाएं। जहां तक बन सके घुटनों को ऊपर उठाएं। श्वास को गहरा और सम रखने से ऊर्जा भीतर घूमने लगेगी। मन को भूल जाएं और शरीर को भूल जाएं। दौड़ते रहें। मंडल ध्यान दूसरा चरण: पंद्रह मिनट आखें बंद कर बैठ जाएं। मुंह को शिथिल और खुला रखें। कमर से ऊपर के शरीर को धीर-धीरे चक्राकार घुमाएं- जैसे हवा में पेड़-पौधे झूमते हैं। अनुभव करें कि हवा आपको इधर-उधर, आगे-पीछे और चारों ओर घुमा रही है। इससे भीतर जागी ऊर्जा नाभि - केंद्र पर आ जायेगी। 191 तृतीय नेत्र से देखना तीसरा चरण: पंद्रह मिनट अब आंखें खोलकर, सिर को स्थिर रखते हुए पीठ के बल लेट जाएं, और दोनों आंखों की पुतलियों को बाएं महत्वपूर्ण है। मुंह खुला रहे और जबड़े शिथिल रहें। श्वास कोमल एवं सम बनी रहे। इससे तुम्हारी केंद्रित ऊर्जा तीसरी आंख पर आ जाएगी। से दाएं घड़ी के कांटे की तरह वृत्ताकार चौथा चरण: पंद्रह मिनट घुमाएं। आंखों को इस तरह घुमाएं, जैसे कि वे एक बड़ी घड़ी की सुई का अनुसरण कर रही हों, परंतु गति को जितना हो सके तेज रखें। यह आखें बंद कर निष्क्रिय हो रहें । 3
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy