________________
मृत्यु में प्रवेश
का स्वाद ले लिया हो। गहरी श्वास छोड़ो चाहते हो तो तुम्हें इस गहन भय के प्रति सकते हो।
और तुम्हें मृत्यु का स्वाद मिल जाएगा। सजग होना चाहिए। और इस गहन भय अगली विधि करने से पहले पंद्रह सुंदर है यह।
को छोड़ना है, उससे मुक्त होना है, तभी मिनट के लिए यह प्रयोग करो ताकि तुम मृत्यु सुंदर है, क्योंकि कुछ भी मृत्यु तुम इस विधि में प्रवेश कर सकते हो। यह तैयार हो जाओ-न केवल तैयार बल्कि जैसा नहीं है-इतना मौन, इतना सहयोगी होगाः श्वास छोड़ने पर अधिक स्वागतपूर्ण, ग्राहक। अब मृत्यु का भय विश्रामदायी, इतना शांत, इतना स्थिर। ध्यान दो। पूरे दिन तुम विश्रांत अनुभव नहीं रहा, क्योंकि मृत्यु अब विश्राम जैसी लेकिन हम मृत्यु से भयभीत हैं। और हम करोगे, और एक अंतर्मोन निर्मित हो लगती है, मृत्यु अब गहन विश्राम जैसी मृत्यु से क्यों भयभीत हैं? मृत्यु का इतना जाएगा।
लगती है। भय क्यों है? हम मृत्यु के कारण मृत्यु से । भयभीत नहीं है क्योंकि उसे तो हम दूसरा चरण:
तीसरा चरणः जानते नहीं हैं। तुम उस चीज से कैसे डर सकते हो जिससे तुम्हारा कभी साक्षात्कार इस भाव को तुम अधिक गहरा सकते लेट जाओ। पहले मृत की भांति अपनी ही न हुआ हो? उस चीज से तुम कैसे डर हो यदि तुम एक दूसरा प्रयोग करो। रोज कल्पना करो। शरीर बस एक लाश की सकते हो जिसे तुम जानते ही नहीं? उससे पंद्रह मिनट के लिए गहरी श्वास बाहर तरह है। लेट जाओ, और फिर अपने होश डरने के लिए कम से कम तुम्हें उसे जानना छोड़ो। किसी कुर्सी पर या जमीन पर बैठ को पंजों पर लाओ। आंखें बंद किए हुए तो चाहिए। तो वास्तव में तुम मृत्यु से जाओ, गहरी श्वास छोड़ो, और श्वास भीतर गति करो। अपने होश को पंजों पर भयभीत नहीं हो; भय कुछ और है। तुम छोड़ते समय आंखें बंद कर लो। जब हवा लाओ और भाव करो कि वहां से अग्नि कभी जिए ही नहीं-उससे मृत्यु का भय बाहर जाए, तुम भीतर चले जाओ। और ऊपर की ओर उठ रही है, सबकुछ जल पैदा होता है।
फिर शरीर को श्वास लेने दो, और जब रहा है। जैसे-जैसे आग उठती है, तुम्हारा भय इसलिए आता है कि तुम जी नहीं हवा भीतर जाए, आंखें खोल लो और तुम शरीर विलीन हो रहा है। पंजों से शुरू करो रहे, इसलिए तुम भयभीत हो–“अभी बाहर चले जाओ। बिलकुल विपरीतः जब और ऊपर की ओर जाओ। तक तो मैं जिया ही नहीं, और यदि मृत्यु श्वास बाहर जाए, तुम भीतर जाओ; जब पंजों से क्यों शुरू करना है? यह सरल आ जाए, तो क्या होगा? अतृप्त, श्वास भीतर जाए, तो तुम बाहर जाओ। होगा, क्योंकि पंजे तुम्हारे मैं से, तुम्हारे अनजिया ही मैं मर जाऊंगा।" मृत्यु का जब तुम श्वास छोड़ते हो, तो भीतर अहंकार से बहुत दूर हैं। भय उन्हीं लोगों को होता है जो वास्तव में एक खाली स्थान निर्मित होता है, क्योंकि तुम्हारा अहंकार सिर पर केंद्रित है। तुम जीवित नहीं हैं। यदि तुम जीवित हो, तो श्वास ही जीवन है। जब तुम गहरी श्वास सिर से शुरू नहीं कर सकते, यह बहुत मृत्यु का स्वागत करोगे। फिर कोई भय छोड़ते हो तो तुम खाली हो गए, जीवन कठिन होगा; तो दूर के बिंदु से शुरू नहीं है। तुमने जीवन जाना है; अब तुम बाहर चला गया। एक तरह से तुम मर करो-पंजे अहंकार से सबसे दूर के बिंदु मृत्यु को भी जानना चाहोगे। लेकिन हम गए, एक क्षण के लिए तुम मर गए। मृत्यु हैं। वहीं से अग्नि को शुरू करो। भाव जीवन से ही इतने भयभीत हैं कि हमने उसे की उस शांति में, भीतर प्रवेश कर जाओ। करो कि पंजे जल गए हैं, केवल राख बची नहीं जाना, हम उसमें गहरे प्रवेश नहीं हवा बाहर जा रही है: तुम अपनी आंखें है। फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ो, आग के किए। उससे मृत्यु का भय पैदा होता है। बंद करो और भीतर चले जाओ। वहां सामने जो कुछ भी आए उसे जलाते हुए।
यदि तुम इस विधि में प्रवेश करना स्थान रिक्त है और तुम सरलता से जा पैर, जांघ, सभी अंग विलीन हो जाएंगे।
183