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________________ ध्यान की विधियां कोई मरता है तो हम कहते हैं कि उसकी पहला काम जो बच्चा करता है, वह है वास्तव में, हम श्वास छोड़ने से मृत्यु असामयिक थी। जब भी कोई मरता श्वास भीतर लेना। बच्चा श्वास बाहर भयभीत हैं। यही कारण है कि श्वास है, हम इस प्रकार बात करने लगते हैं जैसे नहीं छोड़ सकता। पहला काम है श्वास उथली हो गई है। तुम कभी भी श्वास यह कोई दुर्घटना रही हो। मृत्यु, केवल भीतर लेना। वह श्वास बाहर नहीं छोड़ छोड़ते नहीं, बस भीतर लिए चले जाते हो। मृत्यु ही दुर्घटना नहीं है, बाकी सब सकता, क्योंकि उसकी छाती में हवा नहीं बस शरीर ही श्वास छोड़ता है, क्योंकि घटनावश है। मृत्यु पूर्णतः निश्चित है। है; उसे श्वास भीतर लेनी होगी। पहला शरीर केवल श्वास भीतर लेने से नहीं चल तुम्हें मरना ही है। काम है श्वास भीतर लेना। और वृद्ध सकता। उसे जीवन और मृत्यु दोनों की और जब मैं कहता हूं कि तुम्हें मरना है, व्यक्ति, मरते समय जो अंतिम काम जरूरत है। तो लगता है मृत्यु भविष्य में, कहीं बहुत करेगा, वह है श्वास बाहर छोड़ना। मरते दूर है। ऐसा नहीं है-तुम मर ही चुके हो। समय तुम श्वास भीतर नहीं ले . पहला चरणः जिस क्षण तुम पैदा हुए, तुम मरने लगे थे। सकते-या, ले सकते हो? जब तुम मर जन्म के साथ ही मृत्यु एक निर्धारित घटना रहे हो, तुम श्वास भीतर नहीं ले सकते। एक प्रयोग करो। पूरे दिन, जब भी तुम्हें हो गई। उसका एक भाग-जन्म-तो अंतिम कृत्य श्वास भीतर लेना नहीं हो स्मरण आए, गहरी श्वास छोड़ो और घट ही गया; अब केवल दूसरे भाग का सकता; अंतिम कृत्य श्वास का बाहर श्वास भीतर मत लो। शरीर को श्वास लेने घटना रह गया है। तो तुम पहले ही मर छोड़ना होगा। पहला कृत्य श्वास लेना है, दो; तुम बस गहरी श्वास छोड़ते रहो। तुम चुके, आधे मर चुके, क्योंकि एक बार और अंतिम कृत्य श्वास छोड़ना है। श्वास एक गहन शांति अनुभव करोगे, क्योंकि व्यक्ति पैदा हो गया, तो वह मृत्यु के घेरे में भीतर लेना जन्म है और श्वास बाहर मृत्यु शांति है, मृत्यु मौन है। और यदि आ गया, प्रवेश कर गया। अब कुछ भी छोड़ना मृत्यु है। लेकिन हर क्षण तुम दोनों श्वास छोड़ने पर तुम ध्यान दे सको, उसे बदल नहीं सकता, अब उसे बदलने ही कार्य कर रहे हो-श्वास लेना भी और अधिक ध्यान दे सको तो तुम अहंकारशून्य का कोई उपाय नहीं है। तुम उसमें प्रवेश छोड़ना भी। श्वास लेना जीवन है, श्वास अनुभव करोगे। श्वास लेने में तुम्हें कर चुके। जन्म के साथ ही तुम आधे मर छोड़ना मृत्यु है।। अहंकार का अधिक अनुभव होगा; श्वास गए। दूसरेः मृत्यु अंत में नहीं होने वाली; शायद तुमने देखा न हो, पर इसे देखने छोड़ने में तुम्हें अधिक अनुभव वह पहले ही हो चुकी है। वह एक प्रक्रिया का प्रयास करो। जब भी तुम श्वास छोड़ते अहंकारशून्यता का होगा। श्वास छोड़ने है। जिस प्रकार जीवन एक प्रक्रिया है, हो, तुम अधिक शांत होते हो। गहरी पर अधिक ध्यान दो। सारा दिन, जब भी मृत्यु भी एक प्रक्रिया है। हम द्वैत पैदा करते श्वास छोड़ो, और तुम भीतर एक विशेष तुम्हें याद आए, गहरी श्वास छोड़ो और हैं लेकिन जीवन और मृत्यु तुम्हारे दो शांति का अनुभव करोगे। जब भी तुम श्वास भीतर मत लो; शरीर को ही श्वास पैरों की तरह, तुम्हारे दो पांवों ही तरह हैं। श्वास लेते हो, तुम सघन हो जाते हो, तन ले लेने दो; तुम कुछ भी मत करो। जीवन और मृत्यु दोनों एक ही प्रक्रिया हैं। जाते हो। श्वास लेने की सघनता ही एक श्वास छोड़ने पर दिया गया यह बल तुम हर क्षण मर रहे हो। तनाव निर्मित कर देती है। और सामान्यतः, तुम्हें इस प्रयोग को करने में बहुत मदद यह मैं इस तरह कहूं: जब भी तुम साधारणतः श्वास लेने पर ही जोर दिया देगा, क्योंकि तुम मरने को तैयार होओगे। श्वास भीतर लेते हो, तो वह जीवन है, जाता है। यदि मैं तुम्हें गहरी श्वास के लिए एक तैयारी चाहिए, वरना यह विधि बहुत और जब भी तुम श्वास छोड़ते हो, तो वह कहूं तो तुम सदा श्वास भीतर लेने से ही सहयोगी न होगी। और तैयार तुम तभी हो शुरू करोगे। सकते हो जब तुमने किसी तरह से मृत्यु मृत्यु है। 182
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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