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________________ अंतस आकाश को खोज लेना है इससे अंतर-तब विषय बहुत सूक्ष्म अनुभव कर सकते हो। तब तुम आ पहुंचे ही प्रसाद तुम पर उतरता है। यही है वह बन जाता है।... होते हो बड़ी गहन जागरूकता तक।... घड़ी जब फूलों की वर्षा हो जाती है। यही तुम ऐसा कर सकते हो लोभान के लेकिन जब विषय संपूर्णतया तिरोहित है वह क्षण जब तुम जुड़ जाते हो साथ। जलाओ लोभान को, ध्यान करो हो जाता है—विषय की उपस्थिति समाप्त अंतस-सत्ता और जीवन के मूल स्रोत के उस पर, महसूस करो उसको, सुगंध हो जाती है और विषय की अनुपस्थिति भी साथ। यही है वह क्षण जब तुम भिखारी महसूस करो उसकी, भर जाओ उससे, समाप्त हो जाती है; विचार मिट जाता है नहीं रहते; तुम सम्राट हो जाते हो। यही है और फिर पीछे हटते जाओ, दूर हटते और अ-विचार भी मिट जाता है; मन वह क्षण जब तुम संपूर्ण रूप से जाओ उससे। और उस पर ध्यान करते तिरोहित हो जाता है और अ-मन की अभिषेकित हो जाते हो। इससे पहले तो जाओ, करते चले जाओ और होने दो उसे धारणा भी तिरोहित हो जाती है—केवल तुम सूली पर थे; यही होता है वह क्षण अधिक से अधिक सूक्ष्म। एक घड़ी आती तभी तुम उपलब्ध होते हो उस उच्चतम जब सूली तिरोहित हो जाती है और तुम है जब तुम किसी चीज की अनुपस्थिति को को। अब यही है वह घड़ी जब अकस्मात सम्राट हो जाते हो। 5 177
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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