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________________ ध्यान की विधियां चमकीला होता है, वह ज्यादा प्रदीप्त होता जाता है। नाक को कुछ हो गया है, कुछ गलत घट है, उसमें शाश्वत की कोई आभा होती है, सदा स्मरण में रख लेना कि जब गान गया है। बहुत थोड़े से आदमियों के पास जैसे कि शाश्वत आ पहुंचा हो लौकिक समाप्त होता है तो वह वातावरण में एक संवेदनशील नाक होती है। लेकिन यदि संसार में किसी फूल के रूप में ही। निश्चित गुणवत्ता छोड़ जाता है-वह तुम्हारे पास है तो जरा नजदीक रहना सजगता से देखना तुम्हारे पति के, अनुपस्थिति। वातावरण अब वही नहीं फूल के। सुवास भरने देना स्वयं में। फिर, तुम्हारी पत्नी के, तुम्हारे मित्र के, तुम्हारी रहा। वातावरण संपूर्णतया बदल गया धीरे-धीरे सरकते जाना फूल से दूर, बहुत प्रेमिका के चेहरे की तरफ; ध्यान करना क्योंकि गाने का अस्तित्व था और फिर धीमे से, लेकिन महक के प्रति, सुवास के उस पर और अचानक तुम देखोगे न ही गान तिरोहित हो गया-अब है गाने की प्रति सचेत रहना जारी रखना। जैसे-जैसे केवल शरीर को, बल्कि उसको जो शरीर अनुपस्थिति। ध्यान देना इस पर-सारा तुम दूर होते जाते हो, सुवास अधिकाधिक के पार का है, जो झर रहा है शरीर के अस्तित्व भरा हुआ है गाने की अनुपस्थिति सूक्ष्म होती जाएगी, और तुम्हें ज्यादा भीतर से। दिव्यता का एक आभामंडल से। और यह ज्यादा सुंदर है किसी भी गाने ' जागरूकता की आवश्यकता होगी, उसे होता है शरीर के चारों ओर। प्रेमिका का से क्योंकि यह गान है मौन का। एक गान अनुभव करने के लिए। चेहरा अब तुम्हारी प्रेमिका का चेहरा न उपयोग करता है ध्वनि का और जब ध्वनि नाक ही बन जाना। भूल जाना सारे रहा: प्रेमिका का चेहरा परमात्मा का चेहरा तिरोहित हो जाती है तो अनुपस्थिति शरीर के बारे में और अपनी सारी ऊर्जा ले बन चुका है। देखना तुम्हारे बच्चे की ओर, उपयोग करती है मौन का। पक्षी गा चुका आना नाक तक, जैसे कि केवल नाक का पूरी सजगता से, जागरूकता से, उसे होता है तो उसके बाद मौन ज्यादा गहन ही अस्तित्व हो। यदि तुम खो देते हो गंध देखना खेलते हुए और अचानक विषय होता है। यदि तुम देख सकते हो इसे, यदि का बोध, तो फिर कुछ कदम और आगे रूपांतरित हो जाता है।... तुम सचेत रह सकते हो, तो अब तुम ध्यान बढ़ना; फिर पकड़ लेना गंध को। फिर आ उदाहरण के लिए एक पक्षी गाता है एक कर रहे होते हो सूक्ष्म विषय पर, बहुत ही जाना पीछे, पीछे की ओर। धीरे-धीरे, तुम वृक्ष परः सजग हो जाओ, जैसे कि उसी सूक्ष्म विषय पर। बहुत, बहुत दूर से फूल को सूंघने योग्य हो पल में और पक्षी के उसी गान में अस्तित्व एक व्यक्ति चल रहा होता है, बहुत जाओगे। कोई और दूसरा वहां से सूंघ नहीं हो तुम्हारा-समष्टि अस्तित्व नहीं सुंदर व्यक्ति-ध्यान देना उस व्यक्ति पाएगा फूल को। फिर और दूर हटते चले रखती। अपनी समग्र सत्ता को केन्द्रित करो पर। और जब वह चला जाता है, तो ध्यान जाना। बहुत सीधे-सरल ढंग से तुम विषय पक्षी के गान की तरफ और तुम जान देना अनुपस्थिति पर। वह पीछे छोड़ गया को सूक्ष्म बना रहे होते हो। फिर एक घड़ी जाओगे अंतर को। यातायात के शोर का है कोई चीज। उसकी ऊर्जा ने बदल दिया आ जाएगी जब तुम गंध को सूंघ न कोई अस्तित्व न रहा, या फिर वह होता है कमरे को; अब वह वही कमरा पाओगेः अब सूंघ लेना अनुपस्थिति को। अस्तित्व रखता है परिधि पर ही-दूर, नहीं रहा।... अब सूंघना उस अभाव को। जहां सुवास कहीं बहुत दूर। वह छोटा-सा पक्षी और यदि तुम्हारे पास संवेदनशील नाक अभी कुछ देर पहले थी, अब वह वहां उसका गान तुम्हारे अस्तित्व को भर देता है है-बहुत थोड़े से लोगों के पास होती है; नहीं रही; उसी के अस्तित्व का वह दूसरा संपूर्णतया-केवल तुम्हारा और पक्षी का मानवता अपनी नाक लगभग बिलकुल ही हिस्सा है, वह अनुपस्थित हिस्सा, वह अस्तित्व बना रहता है। और फिर जब गान खो चुकी है। पशु बेहतर हैं, उनकी अंधेरा हिस्सा। यदि तुम संघ सको महक समाप्त हो जाता है, तो सुनो गाने की घ्राण-शक्ति कहीं ज्यादा संवेदनशील है, की अनुपस्थिति को, यदि तुम अनुभव कर अनुपस्थिति को। तब विषय सूक्ष्म बन ज्यादा क्षमतापूर्ण है आदमी से। आदमी की सको कि इससे अंतर पड़ता है-पड़ता ही 176
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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