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ध्यान की विधियां
देखो। यदि तुम्हारी आंखें दुखने लगें और चालीस मिनट के लिए अभ्यास करना कर गया है। बीच-बीच में अंतराल होंगे। आंसू आ जाएं तो भी फिक्र मत करो। वे चाहिए; उससे कम से काम नहीं चलेगा, कुछ समय के लिए विचार रुक आंसू भी निर्भार होने की प्रक्रिया का ही वह सहायक नहीं होगा।
जाएंगे-जैसे कि यातायात रुक गया और अंग होंगे; वे सहायक होंगे। वे आंसू जब तुम्हें सच में लगे कि तुम आकाश कोई गति नहीं कर रहा है। तुम्हारी आंखों को अधिक निर्दोष और से एक हो गए, तो अपनी आंखें बंद कर प्रारंभ में तो कुछ क्षणों के लिए ही ऐसा सद्यःस्नात कर जाएंगे। तुम बस अपलक लो। जब आकाश तुममें प्रवेश कर जाए तो होगा, लेकिन वे क्षण भी रूपांतरंकारी हैं। देखते रहो।
तुम आंखें बंद कर सकते हो। तुम उसे धीरे-धीरे मन शांत होने लगेगा, और दूसरी बातः आकाश के बारे में सोचो भीतर भी देख पाओगे। तो चालीस मिनट ज्यादा लंबे अंतराल प्रकट होंगे। कई-कई मत; यह स्मरण रहे। तुम आकाश के के बाद ही आंखें बंद करो-जब तुम्हें लगे मिनटों के लिए कोई विचार, कोई मेघ नहीं विषय में सोचना शुरू कर सकते हो। तुम कि एकपन घट गया और एक मिलन उठेगा। और जब कोई विचार, कोई मेघ आकाश के विषय में कई कविताएं, कई घटित हो रहा है, तुम आकाश के एक नहीं रहता तब बाह्य और आंतरिक सुंदर कविताएं स्मरण कर सकते हो-तब हिस्से हो गए और मन नहीं रहा–फिर आकाश एक हो जाते हैं क्योंकि केवल तुम बात को चूक जाओगे। तुम्हें उसके आंखें बंद कर लो और भीतर के आकाश विचार ही बाधा है; केवल विचार ही बारे में सोचना नहीं है-उसमें प्रवेश में ही रहो।।
दीवार खड़ी करता है। विचार के कारण ही करना है, तुम्हें उसके साथ एक हो जाना यह स्पष्टता तीसरी बात में सहायक बाह्य बाह्य है और आंतरिक आंतरिक है। है क्योंकि यदि तुम उसके बारे में सोचने होगी कि “उस शून्य स्पष्टता में जब विचार नहीं होता तो बाह्य और लगो, तो फिर से एक अवरोध निर्मित हो प्रवेश करो।" स्पष्टता सहयोगी आंतरिक अपनी सीमाएं खो देते हैं, वे एक गया। तुम फिर से आकाश को चूकने होगी-अप्रदूषित, मेघरहित आकाश। हो जाते हैं। सीमाएं वास्तव में कभी थीं ही लगे, और तुम फिर से अपने मन में बस उस स्पष्टता के प्रति सजग रहो जो नहीं। वे विचार के कारण, अवरोध के आबद्ध हो गए। आकाश के बारे में सोचो तुम्हारे चारों ओर है। उसके विषय में सोचो कारण ही प्रगट हुई थीं। मत। आकाश ही हो जाओ। बस झांको मत। बस स्पष्टता, शुद्धता व निर्दोषता के लेकिन ग्रीष्म ऋतु न हो तो तुम क्या
और आकाश में प्रवेश करो और आकाश प्रति सजग रहो। इन शब्दों को दोहराना करोगे? यदि आकाश मेघाच्छादित है, को अपने भीतर आने दो। यदि तुम नहीं है। सोचने की अपेक्षा तुम्हें उनको स्पष्ट नहीं है, तो अपनी आंखें बंद कर लो आकाश में प्रवेश कर जाओ, तो आकाश अनुभव करना है। और एक बार तुम और अंतआकाश में प्रवेश कर जाओ। तत्क्षण तुममें प्रवेश कर जाएगा। आकाश में झांको तो अनुभव आ ही बस अपनी आंखें बंद कर लो और यदि
यह तुम किस प्रकार कर सकते हो? जाएगा, क्योंकि तुम्हें इन चीजों की कल्पना तुम्हें कोई विचार दिखाई दें, तो उन्हें ऐसे यह तुम किस प्रकार करोगे—यह आकाश नहीं करनी है वे मौजूद हैं ही। यदि तुम देखो जैसे कि वे आकाश में तिरते हुए मेघ में प्रवेश कर जाना? बस दूर से दूर झांकते आकाश में झांको तो वे तुम्हें घटने लगेंगी। हों। पृष्ठभूमि के आकाश के प्रति सजग चले जाओ। झांकते ही चले जाओ-जैसे यदि तुम खुले मेघरहित आकाश पर रहो और विचारों से उदासीन बने रहो। कि तुम सीमा को खोजने का प्रयास कर ध्यान करो तो अचानक तुम्हें लगेगा कि हम विचारों की बहुत फिक्र लेते हैं और रहे हो। गहरे चले जाओ। जितनी दूर जा मन विलीन हो रहा है, मन गिर रहा है। बीच के अंतराल के प्रति कभी जागते ही सकते हो जाओ। वह जाना ही अवरोध को अंतराल आएंगे। अचानक तुम्हें बोध होगा नहीं। एक विचार गुजरता है, और दूसरे तोड़ देगा। और इस विधि का कम से कम कि जैसे स्वच्छ आकाश तुममें भी प्रवेश विचार के प्रवेश करने से पहले एक
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