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________________ अंतराल आता है— उस अंतराल में आकाश मौजूद है । फिर, जब भी कोई विचार नहीं होता, तो वहां क्या होता है? शून्य वहां होता है। तो यदि आकाश मेघाच्छादित है— ग्रीष्म ऋतु नहीं है और आकाश स्पष्ट नहीं है - तो अपनी आंखें बंद कर लो, अपने मन को पृष्ठभूमि पर, अंतर्भ्राकाश पर केंद्रित करो जिसमें विचार आते और जाते हैं। विचारों पर बहुत ध्यान मत दो; उस आकाश पर ध्यान दो जिसमें 171 गति करते हैं। जैसे, हम इस कक्ष में बैठे हुए हैं। इस अंतस आकाश को खोज लेना कमरे को मैं दो ढंग से देख सकता हूं। या तो मैं तुम्हारी ओर देखूं, ताकि जिस आकाश में, जिस खाली जगह में, जिस कक्ष में तुम बैठे हो उसके प्रति उदासीन हो जाऊं – मैं तुम्हारी ओर देखूं, अपना मन तुम लोगों पर केंद्रित करूं, जो यहां बैठे हैं, और उस कक्ष पर नहीं जिसमें तुम हो-या, मैं अपनी सजगता का फोकस बदल सकता हूं मैं कक्ष में देखूं और तुम्हारे प्रति उदासीन हो जाऊं। तुम यहां हो, लेकिन मेरा जोर, मेरी सजगता कक्ष पर है । फिर पूरा परिप्रेक्ष्य बदल जाता है। इस प्रयोग को अंतर्जगत में जरा करो। अंतअकाश की ओर देखो। उसमें विचार चल रहे हैं: उनके प्रति उदासीन रहो, उन पर कोई ध्यान मत दो। वे हैं; इसे देख भर लो कि वे चल रहे हैं। सड़क पर यातायात चल रहा है। सड़क को देखो और यातायात के प्रति उदासीन रहो। यह मत देखो कि कौन गुजर रहा है; बस इतना ही बोध रखो कि कुछ गुजर रहा है और जिस खाली जगह में वह गुजर रहा है, उसके प्रति सजग रहो। तब ग्रीष्म ऋतु का आकाश भीतर ही घटित होता है। 2
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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