SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंतस आकाश को खोज लेना णि व ने कहा : ग्रीष्म ऋतु में रा जब तुम समस्त आकाश को अंतहीन रूप से मेघरहित देखो, तो उस शून्य स्पष्टता में प्रवेश करो। आकाश पर ध्यान करोः ग्रीष्म ऋतु का मेघरहित आकाश, अंतहीन रूप से रिक्त और स्पष्ट, जिसमें कुछ भी गति नहीं कर रहा-अपने परिपूर्ण कुंवारेपन में। इस पर रिक्त आकाश में प्रवेश करो चित्त को लगाओ, इस पर ध्यान करो, और हुए, उसकी स्पष्टता, मेघरहितता व अनंत बहुत उपयोगी होगी, क्योंकि पृथ्वी पर तो इस शून्य स्पष्टता में प्रवेश कर जाओ। विस्तार को अनुभव करो और उस स्पष्टता ऐसा कुछ बचा नहीं है जिस पर ध्यान यह स्पष्टता, यह आकाशवत स्पष्टता ही में प्रवेश कर जाओ, उसके साथ एक हो किया जाए–केवल आकाश ही है। यदि हो जाओ। जाओ। ऐसा महसूस करो जैसे कि तुम ही तुम चारों ओर देखो, तो सबकुछ आकाश पर ध्यान करना सुंदर है। बस आकाश बन गए हो, अवकाश बन गए मनुष्य-निर्मित है, सबकुछ सीमित है, लेट रहो ताकि पृथ्वी को तुम भल जाओ: हो। सीमा में बंधा हुआ है। आकाश ही है जो किसी भी निर्जन तट पर, कहीं भी धरती आकाश की स्पष्टता में झांकने और सौभाग्य से अभी ध्यान के लिए उपलब्ध पर अपनी पीठ के बल लेट जाओ और उसके साथ एक हो जाने की यह विधि है। आकाश की ओर देखो। खाली आकाश सबसे अधिक अभ्यास में लाई गई है। कई इस विधि को करके देखो, यह सहयोगी सहयोगी होगा-मेघरहित, अनंत। बस परंपराओं ने इसका उपयोग किया है। और होगी, लेकिन तीन बातों का स्मरण रखो। आकाश को देखते हुए, एकटक देखते विशेषतः आधुनिक मन के लिए यह विधि एक : पलक मत झपकाओ-एकटक 169
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy