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________________ शि व ने कहा: किसी भी अक्षर के उच्चारण के आरंभ में, और उसके क्रमिक परिष्कार में, निर्ध्वनि में जागो । यह कैसे करोगे ? किसी मंदिर में चले जाओ। वहां एक घंटा होगा या घड़ियाल । घंटे को हाथ में ले लो और प्रतीक्षा करो। पहले समग्रता से सजग हो जाओ। ध्वनि होने वाली है और तुम्हें उसका आरंभ नहीं चूकना है। पहले तो समग्ररूपेण सजग ध्वनि का आरंभ और अंत होओ – मानो इस पर ही तुम्हारी जिंदगी निर्भर है, मानो कि अभी कोई तुम्हारी हत्या करने जा रहा हो और तुम्हें सावधान रहना है। ऐसे सावधान रहो मानो यह तुम्हारी मृत्यु बनने वाली है। और यदि तुम्हारे मन में कोई विचार चल रहा हो तो अभी रुको; क्योंकि विचार नींद है। विचार के रहते तुम सजग नहीं हो सकते। और जब तुम सजग हो तो विचार नहीं रहता है। इसलिए रुको। जब लगे कि अब मन ध्वनिरहित नाद का श्रवण 165 निर्विचार हो गया, कि अब मन में कोई बादल न रहा, कि अब तुम जागरूक हो, तब ध्वनि के साथ गति करो। पहले जब ध्वनि नहीं है, तब उस पर ध्यान दो। फिर आंखें बंद कर लो। और जब ध्वनि पैदा हो, घंटा बजे, तब ध्वनि के साथ गति करो। ध्वनि धीमी से धीमी, सूक्ष्म होती जाएगी, और फिर विलीन हो जाएगी। इस ध्वनि के साथ यात्रा करो। सजग और सावधान रहो । ध्वनि के साथ उसके अंत तक यात्रा करो। ध्वनि के दोनों छोर को देखो - आरंभ और अंत दोनों को देखो। पहले किसी बाहरी ध्वनि के साथ, घंटा या घड़ियाल के साथ प्रयोग करो। फिर आंखें बंद कर लो। अब भीतर किसी अक्षर का, ओम् या किसी अन्य अक्षर का उच्चारण करो। उसके साथ भी वही प्रयोग करो जो घंटे की ध्वनि के साथ किया था। यह कठिन होगा। इसलिए हम पहले
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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