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बाहर ही ध्वनि के साथ प्रयोग करते हैं। जब बाहर करने में सक्षम हो जाओगे तो भीतर करना भी आसान होगा। तब करो। उस क्षण की प्रतीक्षा करो जब मन खाली हो जाए और तब भीतर ध्वनि निर्मित करो। उसे अनुभव करो; उसके
ध्यान की विधियां
इस प्रयोग को करने में समय लगेगा। कुछ महीने लग जाएंगे, कम से कम तीन महीने तीन महीनों में तुम अधिकाधिक जागरूक हो जाओगे । ध्वनि - पूर्व अवस्था
साथ गति करो, जब तक वह बिलकुल और ध्वनि के बाद की अवस्था का विलीन न हो जाए। निरीक्षण करना है; कुछ भी नहीं चूकना है । और जब तुम इतने सजग हो जाओगे कि ध्वनि के आदि और अंत को देखते रह सको तो इसी प्रक्रिया के द्वारा तुम सर्वथा भिन्न व्यक्ति हो जाओगे।
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