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________________ ध्वनिरहित नाद का श्रवण करो और उसे सब ओर से अपने ऊपर बिंदु है जहां कोई ध्वनि प्रवेश नहीं कर कि यह केंद्र सिर में नहीं है। मालूम तो बरसता हुआ अनुभव करो और यह पाती; वह बिंदु तुम हो। होता है कि सिर में है; क्योंकि तुम ध्वनि अनुभव करो कि तुम उसके केंद्र हो। बीच बाजार में इस विधि का प्रयोग नहीं, शब्द सुनते हो। शब्दों के लिए तो __ अपने को केंद्र समझने पर यह जोर क्यों करो। बाजार जैसा कोई दूसरा स्थान नहीं सिर ही केंद्र है; लेकिन ध्वनि के लिए वह है? क्योंकि केंद्र पर कोई ध्वनि नहीं है। है; वह शोरगुल से, पागल शोरगुल से केंद्र नहीं है। यही कारण है कि जापान में वे केंद्र ध्वनिशून्य है; यही कारण है कि तुम्हें खूब भरा रहता है। लेकिन इस शोरगुल के कहते हैं कि आदमी सिर से नहीं, पेट से ध्वनि सुनाई पड़ती है अन्यथा तुम उसे नहीं संबंध में सोचना शुरू मत करो; यह मत सोचता है। जापान में उन्होंने बहुत समय सुन सकते। एक ध्वनि दूसरी ध्वनि को कहो कि यह ध्वनि अच्छी है, यह बुरी है; से ध्वनि के ऊपर काम किया है। नहीं सुन सकती। अपने केंद्र पर ध्वनिशून्य यह उपद्रव पैदा करती है, यह सुंदर और तुमने मंदिरों में बड़े घंटे लगे देखे होंगे। होने के कारण तुम्हें आवाजें सुनाई पड़ती लयपूर्ण है। ध्वनियों के संबंध में तुम्हें वे वहां साधकों के चारों ओर ध्वनि पैदा हैं। केंद्र तो बिलकुल ही मौन है, शांत है, सोच-विचार नहीं करना है। तुम्हें केवल करने के लिए रखे गए हैं। कोई साधक इसी कारण तुम ध्वनि को अपनी ओर केंद्र का बोध रखना है। तुम्हारा यह काम ध्यान कर रहा है और घंटे बजाए जा रहे आते, अपने भीतर प्रवेश करते, अपने को नहीं है कि जो ध्वनि तुम्हारी तरफ बह कर हैं। तुम्हें लगेगा कि इस घंटे की आवाज से घेरते हुए अनुभव करते हो। आए उस पर तुम विचार करो कि वह साधक के लिए बाधा खड़ी हो रही है। यदि तुम खोज लो कि यह केंद्र कहां है, अच्छी है, बुरी है या सुंदर है। तुम्हें इतना लगेगा कि ध्यान करने वाले को बाधा तुम्हारे भीतर वह क्षेत्र कहां है जहां सब ही स्मरण रखना है कि तुम केंद्र हो और महसूस हो रही है। यह क्या उपद्रव है! ध्वनियां बह कर आ रही हैं, तो अचानक सभी ध्वनियां बह कर तुम्हारे पास आ रही मंदिर में आने वाला प्रत्येक दर्शनार्थी सब ध्वनियां विलीन हो जाएंगी, और तुम हैं।... घंटे को बजा देता है। यह आवाज उपद्रव निर्ध्वनि में, ध्वनिशून्यता में प्रवेश कर ध्वनियां कान में नहीं सुनी जाती हैं; वे नहीं है; वह आदमी तो ध्वनि की प्रतीक्षा जाओगे। यदि तुम उस केंद्र को महसूस कान में नहीं सुनी जातीं। कान उन्हें सुन भी कर रहा है। हर दर्शनार्थी इसमें सहयोग दे कर सको जहां सब ध्वनियां सुनी जाती हैं नहीं सकते; कान सिर्फ संचारण करने का रहा है। बार-बार घंटा बजता है, ध्वनि तो अचानक चेतना स्थानांतरित हो जाती काम करते हैं। और इस संचारण के क्रम में निर्मित होती है और ध्यानी फिर अपने में है। एक क्षण तक तुम ध्वनि से भरे संसार वे उस सब को छीट देते हैं जो तुम्हारे लिए प्रवेश कर जाता है। वह उस केंद्र को को सुनोगे और दूसरे ही क्षण तुम्हारी चेतना जरूरी नहीं है। वे चुनाव करते हैं और तब देखता है, जहां वह ध्वनि गहरे में उतर भीतर की ओर मुड़ जाएगी और तुम चुनी हुई ध्वनियां तुम्हारे भीतर प्रवेश करती जाती है। एक चोट घंटे पर लगती है, जिसे निर्ध्वनि को, मौन को सुनोगे जो जीवन का हैं। दर्शनार्थी लगाता है। दूसरी चोट कहीं परम केंद्र है। अब भीतर खोजो कि तुम्हारा केंद्र कहां ध्यानी के भीतर लगती है। यह दूसरी चोट __ और एक बार तुमने उस ध्वनि को सुन है। कान केंद्र नहीं है। तुम कहीं किसी कहां लगती है? यह दूसरी चोट सदा पेट लिया, तो कोई भी आवाज तुम्हें विचलित गहराई से सुनते हो। कान तो कुछ चुनी हुई में, नाभि पर लगती है-सिर में कभी नहीं कर सकेगी। वह तुम्हारी ओर आती ध्वनियों को ही भेजते हैं। तुम कहां हो? नहीं। यदि यह सिर में लगे तो समझना है, लेकिन तुम तक कभी पहुंचती नहीं है। तुम्हारा केंद्र कहां है? चाहिए कि वह ध्वनि नहीं है, शब्द है। तब वह सदा तुम्हारी ओर बह रही है, लेकिन यदि तुम ध्वनियों के साथ काम करते हो तुमने ध्वनि के संबंध में सोचना शुरू कर वह कभी तुम तक पहुंच नहीं पाती। एक तो देर-अबेर तुम जान कर चकित होओगे दिया। तब शुद्धता नष्ट हो गई।... 163
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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