SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान की विधियां पण व ने कहाः ध्वनि के केंद्र में स्नान करो-मानो जलप्रपात के सतत नाद में स्नान कर रहे हो। या कानों में उंगली डाल कर नादों के नाद, अनाहत को सुनो। इस विधि का प्रयोग अनेक ढंग से किया जा सकता है। एक ढंग है कि कहीं भी बैठ कर इसे शुरू करो। ध्वनियां तो सदा मौजूद हैं। चाहे बाजार हो या हिमालय की कोई एकांत गुफा, ध्वनियां सर्वत्र हैं। चुप हो कर बैठो। ध्वनि का केंद्र ध्वनियों के साथ एक बड़ी विशेषता है: तुम सदा ध्वनि के केंद्र हो। ध्वनि के लिए है और तुम उसके केंद्र हो। यह भाव भी जब भी कोई ध्वनि होगी, तुम उसके केंद्र तुम सदा परमात्मा हो-समस्त ब्रह्मांड के कि तुम केंद्र हो, तुम्हें एक गहरी शांति से होओगे। सभी ध्वनियां तुम्हारे पास आती केंद्र। प्रत्येक ध्वनि वर्तुलाकार में तुम तक भर देगा। सारा ब्रह्मांड परिधि बन जाता है हैं-सब तरफ से, सब दिशाओं से। दृष्टि आ रही है, तुम तक गति कर रही है। और तुम उसके केंद्र रहते हो। और प्रत्येक के साथ, आंखों के साथ यह बात नहीं है। यह विधि कहती है: "ध्वनि के केंद्र में चीज, प्रत्येक ध्वनि तुम्हारी तरफ बढ़ रही दृष्टि रेखाबद्ध है। मैं तुम्हें देखता हूं तो स्नान करो।" यदि तुम इस विधि का प्रयोग है। मुझसे तुम तक एक रेखा खिंच जाती है। कर रहे हो तो तुम जहां भी हो वहीं आंखें "मानो जलप्रपात के सतत नाद में स्नान लेकिन ध्वनि वर्तुलाकार है; वह रेखाबद्ध बंद कर लो और भाव करो कि सारा करते हो।" यदि तुम किसी जलप्रपात के नहीं है। सभी ध्वनियां वर्तुल में आती हैं ब्रह्मांड ध्वनियों से भरा है। अनुभव करो किनारे बैठे हो, तो आंखें बंद कर लो और और तुम उनके केंद्र हो। तुम जहां भी हो, कि प्रत्येक ध्वनि तुम्हारी ओर गति कर रही अपने चारों ओर की ध्वनि को महसूस 162
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy