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________________ ध्वनिरहित नाद का श्रवण है। संगीत बाहर बहता रहता है, लेकिन विधियां जागरूकता के लिए विकसित की मर्म को प्राप्त कर तुम जाग जाओगे और वह संगीत के अंतरस्थ केंद्र के प्रति सदा गई थीं, उनका उपयोग नींद के लिए किया उस जागरण के साथ तुम सर्वव्यापी हो सजग बना रहता है। वह समाधि लाता है। जा रहा है! और यह एक उदाहरण है कि जाओगे। वह आनंद लाता है। वह शिखर बन जाता आदमी कैसे अपने साथ दुष्टता और अभी तो तुम कहीं एक जगह हो; उस है।... अनिष्ट किए जा रहा है।... बिंदु को हम अहंकार कहते हैं। अभी तुम लेकिन जब तुम संगीत सुनते हो तो क्या यह सूत्र कहता है कि “तारवाले वाद्यों उसी बिंदु पर हो। यदि तुम जाग जाओगे करते हो? तुम ध्यान नहीं करते हो; उलटे की ध्वनि को सुनते हुए उसकी संयुक्त तो यह बिंदु विलीन हो जाएगा। तब तुम तुम संगीत का शराब की तरह उपयोग केंद्रीय ध्वनि को सुनो। इस प्रकार कहीं एक जगह नहीं होओगे, सर्वत्र करते हो। तुम हलके होने के लिए संगीत सर्वव्यापकता को उपलब्ध होओ।" और होओगे; तब तुम सर्व ही हो जाओगे। तुम का उपयोग करते हो; तुम आत्म-विस्मरण तब तुम उसे जान लोगे, जो जानने योग्य सागर हो जाओगे। तुम अनंत हो जाओगे। के लिए संगीत का उपयोग करते हो। है। तब तुम सर्वव्यापक हो जाओगे। उस मन के साथ सीमा है और ध्यान के .. यही दुर्भाग्य है, यही पीड़ा है कि जो संगीत के साथ, उसके सामासिक केंद्रीय साथ अनंत प्रवेश करता है। 7 161
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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