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________________ ध्वनिरहित नाद का श्रवण है-अचेतन का भेदन करने वाली बोलती है; साधक एक रिक्त पात्र और जब तक कि एक अज्ञात भाषा-प्रवाह गहनतम विधियों में से यह एक विधि है। ऊर्जा प्रवाह के लिए एक मार्ग बन जाता जैसे लगने वाले शब्द न आने लगें। ये तुम 'ल, ल, ल,' के उच्चार से शुरू है। यह ध्यान जीभ का लातिहान है। यह आवाजें मस्तिष्क के उस अपरिचित कर सकते हो, फिर बाद में जो कुछ ध्वनि विधि चेतन मन को इतनी अधिक गहराई हिस्से से आनी चाहिए जिसका उपयोग आए उसके साथ बहो। केवल पहले दिन से शिथिल करती है कि जब इसका बचपने में शब्द सीखने के पहले तुम तुम थोड़ी कठिनाई अनुभव करोगे। एक प्रयोग रात सोने के पहले किया जाए, तो करते थे। बातचीत की शैली में कोमल बार यह चल पड़े फिर तुम इसका राज़, निश्चित ही इसके बाद गहन निद्रा आने ध्वनि वाले शब्द-प्रवाह को आने दो। न इसका गुर जान गए। फिर पंद्रह मिनट तक __ वाली है। रोओ, न हंसो, न चीखो, न चिल्लाओ। तुममें उतर रही इस अज्ञात भाषा का इस विधि में पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार उपयोग करो; और इसका उपयोग एक चरण हैं। सभी चरणों में आंखें बंद रखो। तीसरा चरणः पंद्रह मिनट बोलचाल की भाषा की तरह ही करो; वास्तव में तुम इस भाषा में बातचीत ही खड़े हो जाओ और अनजानी भाषा में कर रहे हो। देववाणी ध्यान के लिए बोलना जारी रखो और अब उच्चारित इस विधि का पंद्रह मिनट का अभ्यास निर्देश शब्दों के साथ एक लयबद्धता में शरीर तुम्हारे चेतन मन को गहरा विश्राम दे देगा। को धीरे-धीरे गति करने दो, मुद्राएं बनाने और तब तुम बस लेट जाओ और निद्रा में पहला चरण: पंद्रह मिनट दो। यदि तुम्हारा शरीर शिथिल है तो डूब जाओ। तुम्हारी नींद गहरी हो जाएगी। सूक्ष्म ऊर्जाएं तुम्हारे भीतर एक लातिहान कुछ ही सप्ताह में तुम अपनी नींद में एक शांत बैठ जाओ कोमल संगीत को : नामक मुद्राएं और गतियां पैदा करेंगी, जो गहराई का अनुभव करोगे और सुबह तुम सुनो। तुम्हारे कुछ भी किये बिना ही जारी बिलकुल ताजा अनुभव करोगे। 5 रहेंगी। दूसरा चरण: पंद्रह मिनट चौथा चरणः पंद्रह मिनट तेववाणी का अर्थ है परमात्मा की निरर्थक आवाजें निकालना शुरू करो, वाणी। इसमें साधक को माध्यम उदाहरण के लिए 'ल, ल, ल' से प्रारंभ लेट जाओ, शांत और निष्क्रिय बने बनाकर दिव्यता ही गति करती है और करो और इसे उस समय तक जारी रखो रहो। 6 159
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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