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बन जाओ।
और तब तुम अपने और ध्वनि के बीच गहरी लयबद्धता अनुभव करोगे; तब तुममें उसके लिए गहरा अनुराग पैदा होगा। यह ओम् की ध्वनि इतनी ही सुंदर और संगीतमय है। जितना ही तुम उसका उच्चार करोगे उतने ही तुम उसकी सूक्ष्म मिठास से भर जाओगे। ऐसी ध्वनियां हैं जो बहुत तीखी और कठोर हैं। ओम् एक बहुत मीठी ध्वनि है और यह शुद्धतम है। इसका उच्चार करो और इससे आपूरित हो जाओ ।
जब तुम ओम् की ध्वनि के साथ लयबद्ध अनुभव करने लगो, तब तुम इसका जोर से उच्चार करना बंद कर सकते हो। अब ओंठ बंद कर लो और ओम् का उच्चार भीतर ही करो, लेकिन पहले भीतर जोर से उच्चार करो, ताकि ध्वनि तुम्हारे पूरे शरीर में फैल जाए, उसके प्रत्येक हिस्से को, एक-एक कोशिका को छूए । तुम इससे अधिक प्राणवान, अधिक जीवंत हुआ अनुभव करोगे। तुम स्वयं में एक नवजीवन प्रवेश करता हुआ अनुभव करोगे ।
तुम्हारा शरीर एक वाद्य यंत्र की तरह है । उसे लयबद्धता की जरूरत है; और जब लयबद्धता खंडित होती है, तो तुम अड़चन में पड़ते हो। यही कारण है कि जब तुम संगीत सुनते हो, तो तुम्हें अच्छा लगता है। तुम्हें यह अच्छा क्यों लगता है? संगीत और क्या है सिवाय लयबद्ध सुर-ताल के ?
जब तुम्हारे आसपास संगीत होता है तो
ध्यान की विधियां
तुम इतना सुख-चैन क्यों अनुभव करते हो ? और शोरगुल और अराजकता के बीच तुम्हें बेचैनी क्यों लगती है ? कारण है कि तुम स्वयं गहरे रूप से संगीतमय हो । तुम एक वाद्य यंत्र हो और यह यंत्र प्रतिध्वनित करता है।
अपने भीतर ओम् का उच्चार करो और तुम अनुभव करोगे कि तुम्हारा पूरा शरीर उसके साथ नृत्य करने लगा है। तब तुम्हें महसूस होगा कि तुम्हारा पूरा शरीर उसमें नहा रहा है; उसका पोर पोर इस स्नान से शुद्ध हो रहा है। लेकिन जैसे-जैसे इसकी प्रतीति प्रगाढ़ हो, जैसे- जैसे यह ध्वनि ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे भीतर प्रवेश करे वैसे-वैसे उच्चार को धीमा करते जाओ। क्योंकि ध्वनि जितनी धीमी होगी, उतनी ही वह गहराई प्राप्त करेगी। यह होमिओपैथी की खुराक जैसी है; जितनी छोटी खुराक उतनी ही गहरी उसकी पैठ होती है। गहरे जाने के लिए तुम्हें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो कर जाना होगा।
स्थूल और कर्कश स्वर तुम्हारे हृदय में नहीं उतर सकते; वे तुम्हारे कानों में तो प्रवेश करेंगे, लेकिन हृदय में नहीं । हृदय में प्रवेश का मार्ग बहुत संकरा है और हृदय स्वयं इतना कोमल है कि सिर्फ बहुत धीमे, लयपूर्ण और सूक्ष्म स्वर ही उसमें प्रवेश पा सकते हैं। और जब तक कोई ध्वनि तुम्हारे हृदय में प्रवेश न करे, तब तक मंत्र पूरा नहीं होता है। मंत्र तभी पूरा होता है जब उसकी ध्वनि तुम्हारे हृदय में, तुम्हारी अंतस सत्ता के गहनतम केंद्रीय मर्म में प्रवेश करे । इसलिए उच्चार को धीमा,
और धीमा करते चलो।
इन ध्वनियों को धीमा और सूक्ष्म बनाने के और भी कारण हैं। ध्वनि जितनी सूक्ष्म होगी, उतने ही ज्यादा सघन और तीक्ष्ण बोध की भीतर तुम्हें जरूरत होगी। ध्वनि जितनी ज्यादा स्थूल होगी, भीतर उतने ही कम होश की जरूरत होती है। ध्वनि की स्थूलता ही काफी है तुम पर चोट करने के लिए; तुम्हें उसका बोध होगा ही । लेकिन वह हिंसात्मक है।
यदि ध्वनि संगीतपूर्ण, लयपूर्ण और सूक्ष्म हो तो तुम्हें उसे अपने भीतर सुनना होगा, और उसे सुनने के लिए तुम्हें बहुत सजग होना होगा। यदि तुम सचेत नहीं हो, तो तुम निद्रा में उतर जाओगे और तब तुम पूरी बात ही चूक जाओगे ।
किसी मंत्र या जप के साथ, किसी ध्वनि के प्रयोग के साथ यही कठिनाई है कि वह नींद पैदा करता है। वह एक सूक्ष्म शामक है, नींद की दवा है। यदि तुम किसी ध्वनि को निरंतर दोहराते रहे, उसके प्रति बिना सजग हुए, तो तुम सो जाओगे क्योंकि तब पुनरुक्ति यांत्रिक हो जाती है। ओम् - ओम् - ओम् यांत्रिक हो जाता है और तब पुनरुक्ति ऊब पैदा करती है।
इसलिए दो बातें तुम्हें साधनी है: ओम् के उच्चार को धीमा और सूक्ष्म करते जाओ और उसके साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा सजग होते जाओ। ध्वनि जितनी ज्यादा सूक्ष्म होती है, तुम उतने ज्यादा सचेत होते जाते हो। तुम्हें ज्यादा सजग बनाने के लिए ओम् का उच्चार ज्यादा सूक्ष्म करते जाना होगा । तब एक बिंदु आता है जब ध्वनि
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