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________________ शि व ने कहाः ओम् जैसी किसी ध्वनि का धीमे-धीमे गुंजार करो। जैसे-जैसे ध्वनि पूर्णध्वनि में प्रवेश करती है वैसे-वैसे साधक भी। "ओम् जैसी किसी ध्वनि का धीमे-धीमे गुंजार करो।" उदाहरण के लिए ओम् को लो। यह आधारभूत ध्वनियों में से एक है। अ उ और म- ये तीन ध्वनियां ओम् में सम्मिलित हैं। ये तीनों बुनियादी ध्वनियां हैं। अन्य सभी ध्वनियां इनसे ही निष्पन्न, ओम् ॐ इनसे ही बनी और इनका ही मिश्रण हैं। ये तीनों बुनियादी हैं जैसे भौतिकी के लिए इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और पाजीट्रॉन बुनियादी हैं। इस बात को गहराई से समझना होगा । .... ध्वनि का उच्चारण एक सूक्ष्म विज्ञान है । पहले तुम्हें ओम का उच्चारण जोर से बाहर-बाहर करना है। दूसरे भी इसे सुन सकेंगे। जोर से उच्चार शुरू करना अच्छा है। क्यों? क्योंकि जब तुम जोर से उच्चार करते हो तो तुम भी उसे साफ-साफ सुनते 155 ध्वनिरहित नाद का श्रवण हो । जब भी तुम कुछ कहते हो तो दूसरों से कहते हो; वह तुम्हारी आदत बन गई है। जब भी तुम बात करते हो तो दूसरों से करते हो। और तुम स्वयं को बोलते हुए तभी सुनते हो जब तुम दूसरों से बात करते होते हो। इसलिए एक स्वाभाविक आदत से आरंभ करना अच्छा है। ओम् ध्वनि का उच्चार करो, और फिर धीरे-धीरे उस ध्वनि के साथ लयबद्ध अनुभव करो। जब ओम् का उच्चार करो तो उससे आपूरित हो जाओ, भर जाओ । और सब कुछ भूल जाओ; ओम् ही बन जाओ, ध्वनि ही बन जाओ। और ध्वनि ही बन जाना बहुत आसान है क्योंकि ध्वनि तुम्हारे शरीर में, तुम्हारे मन में, तुम्हारे पूरे स्नायु संस्थान में गूंजने लगती है। ओम् की अनुगूंज को अनुभव करो। ओम् का उच्चार करो और अनुभव करो कि तुम्हारा पूरा शरीर उससे भर गया है, शरीर का प्रत्येक कोश उससे गूंज उठा है। उच्चार करना लयबद्ध होना भी है। ध्वनि के साथ लयबद्ध होओ; ध्वनि ही
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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