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________________ ध्यान की विधियां हो रही है। भाव करें कि आप अपनी तीसरा चरण: पंद्रह मिनट हाथ क्रॉस करके एक दूसरे के हाथ पकड़ ऊर्जा बाहर ब्रह्मांड में फैलने दे रहे हैं। लेते हैं फिर पूरा शरीर एक बड़े कपड़े से साढ़े सात मिनट के बाद हथेलियों को शांत और थिर हो कर बैठे रहें या लेट ढंक लेते हैं। यदि वे निर्वस्त्र हों तो अच्छा उलटा, भूमिउन्मुख कर लें और उन्हें जाएं। 2 होगा। कमरे में मंद प्रकाश हो जैसे विपरीत दिशा में वृत्ताकार घुमाना शुरू छोटी-छोटी चार मोमबत्तियां जल रही करें। अब फैले हुए हाथ नाभि की ओर हों। केवल इस ध्यान के लिए अलग वापस आएंगे फिर पेट के किनारे से स्त्री-पुरुष जोड़ों रखी एक अगरबत्ती का उपयोग कर बाहर वृत्त बनाते हुए बाजुओं में फैल कर सकते हैं। फिर वृत्त को पूरा करते हुए नाभि की ओर आंखें बंद कर लें और तीस मिनट वापस लौटेंगे। अनुभव करो कि तुम तक, एक साथ, भौरे की गुंजार करें। ऊर्जा भीतर ग्रहण कर रहे हो। पहले 'शो ने इस विधि का एक भिन्न कुछ ही समय में अनुभव होगा कि चरण की तरह शरीर में यदि कोई धीमी गारूप जोड़ों के लिए दिया है। ऊर्जाएं आपस में मिल रहीं, डूब रहीं गति हो तो उसे रोकें मत, होने दें। स्त्री और पुरुष आमने-सामने बैठ अपने और एक हो रही हैं।।
SR No.002367
Book TitleDhyanyog Pratham aur Antim Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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