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ध्वनिरहित नाद का श्रवण
दब्रह्म एक प्राचीन तिब्बती
विधि है जिसे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में किया जाता रहा है। अब इसे दिन में किसी भी समय अकेले या अन्य लोगों के साथ किया जा सकता है लेकिन पेट खाली होना चाहिए और इस ध्यान के बाद पंद्रह मिनट तक विश्राम करना जरूरी है। यह ध्यान एक घंटे का है और इसके तीन चरण हैं।
नादब्रह्म ध्यान
पहला चरण: तीस मिनट
स्थिति ऐसी आती है जब गुंजार अपने दो भागों में बंटा हुआ है। पहले साढ़े
आप जारी रहता है और तुम एक श्रोता सात मिनट में दोनों हथेलियां एक विश्रामपूर्ण मुद्रा में आंख और मात्र हो जाते हो। इस विधि में किसी आकाशोन्मुखी फैला कर नाभि के पास मुंह बंद करके बैठें। अब भौरे की तरह विशेष श्वसन प्रक्रिया की जरूरत नहीं है से आगे की ओर बढ़ाते हुए चक्राकार गुंजार की ध्वनि निकालना शुरू करें। और तुम गुंजार की लय को बदल सकते घुमाएं। दायां हाथ दायीं ओर और बायां गुंजार इतना तीव्र हो कि तुम्हारे आसपास हो तथा लगे तो शरीर को धीरे-धीरे झूमने हाथ बायीं ओर चक्राकार घुमाएं। और बैठे लोगों को यह सुनाई पड़ सके और दे सकते हो।
तब वर्तुल पूरा करते हुए दोनों हथेलियों गुंजार की ध्वनि के कंपन तुम्हारे पूरे शरीर
को पूर्ववत नाभि के सामने वापस ले में फैल सकें। स्वयं को एक खाली पात्र दूसरा चरण: पंद्रह मिनट
आएं। यह गति साढ़े सात मिनट तक या खोखले ट्यूब की तरह कल्पना करो
जारी रखें। गति इतनी धीमी हो कि कई जो गुंजार की ध्वनि से भर गई हो। एक दूसरा चरण साढ़े सात-सात मिनट के बार तो ऐसा लगेगा कि कोई गति ही नहीं
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